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लाखौं चट्टान चिर्दी, विकट गिरिशिला कन्दरा चूर्ण गर्दी | |||
::घुम्दै नाची दगुर्दी, श्रवण-विवरमा दिव्य सङ्गीत भर्दी ॥ | |||
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आमा ! भन्दै झरेका सकल गिरिनदी काखमा टप्प धर्दी | |||
::छर्दी पीयुष जस्ता जलकण लहरी-हस्तले, मस्त पर्दी । | |||
कालो बर्दी-सरीको कलिमल मनको ध्वस्त पारेर हर्दी | |||
::गङ्गामा भुक्ति-मुक्ती दुई दिदि-बहिनी नित्य खेल्छन् कपर्दी ॥ | |||
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Latest revision as of 11:29, 18 May 2025
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पतित-पावनी गङ्गाजीको झाँकी
(१)
ठाडै कैलासदेखि दुततर गतिले गड्गडाएर झर्दी
झर्दा श्री शङ्करैको गल-गलित ठुलो सर्प झै सल्ल पर्दी ।
लाखौं चट्टान चिर्दी, विकट गिरिशिला कन्दरा चूर्ण गर्दी
घुम्दै नाची दगुर्दी, श्रवण-विवरमा दिव्य सङ्गीत भर्दी ॥
(२)
आमा ! भन्दै झरेका सकल गिरिनदी काखमा टप्प धर्दी
छर्दी पीयुष जस्ता जलकण लहरी-हस्तले, मस्त पर्दी ।
कालो बर्दी-सरीको कलिमल मनको ध्वस्त पारेर हर्दी
गङ्गामा भुक्ति-मुक्ती दुई दिदि-बहिनी नित्य खेल्छन् कपर्दी ॥