Page:Ritubichar.pdf/73: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | <noinclude>{{start center block}}</noinclude> | ||
<poem> | <poem> | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६१}} | ||
हालमा नयनाऽऽनन्दी हरियो कान्तिमाधुरी। | हालमा नयनाऽऽनन्दी हरियो कान्तिमाधुरी। | ||
गहुँबारीसिवा अन्त छैन यो पृथिवीभरी।। | गहुँबारीसिवा अन्त छैन यो पृथिवीभरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६२}} | ||
गहुँका हरिया साना पातमा बिन्दु शीतका। | गहुँका हरिया साना पातमा बिन्दु शीतका। | ||
पन्नामाथि जडायेका मोती झैं देखिये निका।। | पन्नामाथि जडायेका मोती झैं देखिये निका।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६३}} | ||
पापी शिशिरको सेतो शीतको शीतनिर्मित। | पापी शिशिरको सेतो शीतको शीतनिर्मित। | ||
छाता झैं रातमा चन्द्र देखिन्छन् शैत्यपूरित।। | छाता झैं रातमा चन्द्र देखिन्छन् शैत्यपूरित।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६४}} | ||
उनै पूर्णकलाधारी सुखकारी सुधामय। | उनै पूर्णकलाधारी सुखकारी सुधामय। | ||
इन्दुका चाँदनीबाट हुन थाल्यो सदा भय।। | इन्दुका चाँदनीबाट हुन थाल्यो सदा भय।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६५}} | ||
धामीतुल्य सबै लोक काँपेका देखि थर्थरी। | धामीतुल्य सबै लोक काँपेका देखि थर्थरी। | ||
चन्द्रले चाँदनीरूप खित्का छोडे कि बेसरी?।। | चन्द्रले चाँदनीरूप खित्का छोडे कि बेसरी?।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६६}} | ||
चीसो तपतपाऽऽकार चाँदनीरूप चादर। | चीसो तपतपाऽऽकार चाँदनीरूप चादर। | ||
ओढी उग्र तपस्यामा मस्त छन् कि निशाकर?।। | ओढी उग्र तपस्यामा मस्त छन् कि निशाकर?।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६७}} | ||
हालमा चन्द्रको छैन सूर्यको झैं प्रशंसन। | हालमा चन्द्रको छैन सूर्यको झैं प्रशंसन। | ||
भला हुन्थ्यो सदाकाल कहाँ ज्यादा नरम्पन?।। | भला हुन्थ्यो सदाकाल कहाँ ज्यादा नरम्पन?।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६८}} | ||
भयेदेखि हिजोआज उनै साथी उनै मनी। | भयेदेखि हिजोआज उनै साथी उनै मनी। | ||
सहसा शीतबाधाले सकदैन छुनै पनि।। | सहसा शीतबाधाले सकदैन छुनै पनि।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|६९}} | ||
बढालू रसिला सोझा जातिजम्मा उखूकन। | बढालू रसिला सोझा जातिजम्मा उखूकन। | ||
लोक लाग्यो विजेता झैं चूर्ण पारी चपाउन।। | लोक लाग्यो विजेता झैं चूर्ण पारी चपाउन।। | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Revision as of 09:28, 11 April 2025
This page has not been proofread
६१
हालमा नयनाऽऽनन्दी हरियो कान्तिमाधुरी।
गहुँबारीसिवा अन्त छैन यो पृथिवीभरी।।
६२
गहुँका हरिया साना पातमा बिन्दु शीतका।
पन्नामाथि जडायेका मोती झैं देखिये निका।।
६३
पापी शिशिरको सेतो शीतको शीतनिर्मित।
छाता झैं रातमा चन्द्र देखिन्छन् शैत्यपूरित।।
६४
उनै पूर्णकलाधारी सुखकारी सुधामय।
इन्दुका चाँदनीबाट हुन थाल्यो सदा भय।।
६५
धामीतुल्य सबै लोक काँपेका देखि थर्थरी।
चन्द्रले चाँदनीरूप खित्का छोडे कि बेसरी?।।
६६
चीसो तपतपाऽऽकार चाँदनीरूप चादर।
ओढी उग्र तपस्यामा मस्त छन् कि निशाकर?।।
६७
हालमा चन्द्रको छैन सूर्यको झैं प्रशंसन।
भला हुन्थ्यो सदाकाल कहाँ ज्यादा नरम्पन?।।
६८
भयेदेखि हिजोआज उनै साथी उनै मनी।
सहसा शीतबाधाले सकदैन छुनै पनि।।
६९
बढालू रसिला सोझा जातिजम्मा उखूकन।
लोक लाग्यो विजेता झैं चूर्ण पारी चपाउन।।