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कहाँ उस्तो हिलो मैलो, कहाँ यो मोहिनी छवि | कहाँ उस्तो हिलो मैलो, कहाँ यो मोहिनी छवि | ||
कति राम्रो उदायेको विश्व सौभाग्यको रवि।। | कति राम्रो उदायेको विश्व सौभाग्यको रवि।। | ||
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वर्षाले जलले पूर्ण मेघमण्डलमा पसी। | वर्षाले जलले पूर्ण मेघमण्डलमा पसी। | ||
चन्द्रले कालिमा दोष फालेछन् कि घसी घसी?।। | चन्द्रले कालिमा दोष फालेछन् कि घसी घसी?।। | ||
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चन्द्रको चाँदनीरूप झल्कँदा राति गौरव। | चन्द्रको चाँदनीरूप झल्कँदा राति गौरव। | ||
कपूरले लिपेजस्तो देखिन्छ जगतै सब।। | कपूरले लिपेजस्तो देखिन्छ जगतै सब।। | ||
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आनन्दी देवतातुल्य चन्द्रका रश्मिजालमा। | आनन्दी देवतातुल्य चन्द्रका रश्मिजालमा। | ||
पीङका रङ्गमा दङ्ग देखिन्छन् सब हालमा।। | पीङका रङ्गमा दङ्ग देखिन्छन् सब हालमा।। | ||
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जुनेली रातमा राम्रो सुन्दा चहचहध्वनि। | जुनेली रातमा राम्रो सुन्दा चहचहध्वनि। | ||
फनक्क भुमरी मारी घुम्छ आनन्द फन्फनी।। | फनक्क भुमरी मारी घुम्छ आनन्द फन्फनी।। | ||
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पुरानू विजयस्तम्भरूप राम्रो सुविस्तृत। | पुरानू विजयस्तम्भरूप राम्रो सुविस्तृत। | ||
यो दशैंचाडमा मिल्छन् धेरै सिद्धान्त अङ्कित।। | यो दशैंचाडमा मिल्छन् धेरै सिद्धान्त अङ्कित।। | ||
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जसरी पीङ मच्चिन्छ हिन्दूजाति उसै गरी। | जसरी पीङ मच्चिन्छ हिन्दूजाति उसै गरी। | ||
विश्वमा मच्चिँदै घुम्थ्यो जयका जमरा धरी।। | विश्वमा मच्चिँदै घुम्थ्यो जयका जमरा धरी।। | ||
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यै शरद्मा दशैं हाम्रो, यसैमा दीपमालिका। | यै शरद्मा दशैं हाम्रो, यसैमा दीपमालिका। | ||
यसैमा धान्यसम्पत्ति, धन्य यो सुखतालिका।। | यसैमा धान्यसम्पत्ति, धन्य यो सुखतालिका।। | ||
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माथमा जमरा माथी जमाई गुणकेशरी। | माथमा जमरा माथी जमाई गुणकेशरी। | ||
नरनारी जमेका छन् विजयाऽऽनन्दमा परी।। | नरनारी जमेका छन् विजयाऽऽनन्दमा परी।। | ||
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Revision as of 08:09, 10 April 2025
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८८
कहाँ उस्तो हिलो मैलो, कहाँ यो मोहिनी छवि
कति राम्रो उदायेको विश्व सौभाग्यको रवि।।
८९
वर्षाले जलले पूर्ण मेघमण्डलमा पसी।
चन्द्रले कालिमा दोष फालेछन् कि घसी घसी?।।
९०
चन्द्रको चाँदनीरूप झल्कँदा राति गौरव।
कपूरले लिपेजस्तो देखिन्छ जगतै सब।।
९१
आनन्दी देवतातुल्य चन्द्रका रश्मिजालमा।
पीङका रङ्गमा दङ्ग देखिन्छन् सब हालमा।।
९२
जुनेली रातमा राम्रो सुन्दा चहचहध्वनि।
फनक्क भुमरी मारी घुम्छ आनन्द फन्फनी।।
९३
पुरानू विजयस्तम्भरूप राम्रो सुविस्तृत।
यो दशैंचाडमा मिल्छन् धेरै सिद्धान्त अङ्कित।।
९४
जसरी पीङ मच्चिन्छ हिन्दूजाति उसै गरी।
विश्वमा मच्चिँदै घुम्थ्यो जयका जमरा धरी।।
९५
यै शरद्मा दशैं हाम्रो, यसैमा दीपमालिका।
यसैमा धान्यसम्पत्ति, धन्य यो सुखतालिका।।
९६
माथमा जमरा माथी जमाई गुणकेशरी।
नरनारी जमेका छन् विजयाऽऽनन्दमा परी।।