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Page:Lalitya bhag 1 ra 2.pdf/151

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(१२)
श्वास-वायुकन बेसरि खारी
देह निश्चल मुढो सरि पारी ।
ब्रह्मरन्ध्र-बिच जीव चलाऊँ
योगशक्ति दिनरात बढाऊँ ॥

(१३)
क्यै नली विधि, निषेध, विकल्प
चित्त लीन गरि कैय्यन कल्प ।
निर्विकल्प परिपूर्ण असीम
चित्‌स्वरूप भइ दीप्त रहूँ म ॥

(१४)
राश लागि धमिरा धुरिँदामा
उम्रि वृक्ष, लहराहरु लामा ।
देह पर्वत-समान बनोस
कोहि गै तर तहाँ नखनोस ॥

(१५)
सारि सारि छुरि छम्‌छम पारी
नाचदै गिडिगिडिकन मारी ।
अप्सराहरु भुलाउनलाई
आउँदा म नभुलूँ लहसाई ॥