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नहतै तरङ्ग अरूहरू । | नहतै तरङ्ग अरूहरू । | ||
मनमा भए लहराउँदा ॥ | ::मनमा भए लहराउँदा ॥ | ||
वन-सुन्दरीकन बासना । | वन-सुन्दरीकन बासना । | ||
मलया५निलैसित आउँदा ॥ | ::मलया५निलैसित आउँदा ॥ | ||
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अनि नीँद | अनि नीँद र््रृहरूसँग । | ||
मिसिई झरी वन-जूनमा ॥ | ::मिसिई झरी वन-जूनमा ॥ | ||
अमृतांशुका कर झैं लघु । | अमृतांशुका कर झैं लघु । | ||
क्रतुराजका मृदु पातमा ॥ | ::क्रतुराजका मृदु पातमा ॥ | ||
तरुणी सुतिन् कुसुमायिता । | तरुणी सुतिन् कुसुमायिता । | ||
सपना खुली छावि-संयुता ॥ | ::सपना खुली छावि-संयुता ॥ | ||
वन पस्दथे सपना कता । | वन पस्दथे सपना कता । | ||
मृदु कञ्जमा कुसुमी कता ॥ | ::मृदु कञ्जमा कुसुमी कता ॥ | ||
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यमुना-विचुम्बित तीरमा । | यमुना-विचुम्बित तीरमा । | ||
अमृतांशुले सुषमायुत ॥ | ::अमृतांशुले सुषमायुत ॥ | ||
तरुशाखिनी वन-वल्लरी । | तरुशाखिनी वन-वल्लरी । | ||
दुद डोरमा तल | ::दुद डोरमा तल भर्दथी ॥ | ||
तर पीड बन्न बटारिँदी । | तर पीड बन्न बटारिँदी । | ||
मुरली-मनोहर विन्तिमा ॥ | ::मुरली-मनोहर विन्तिमा ॥ | ||
रज झर्दथ्यो सन नर्बर । | रज झर्दथ्यो सन नर्बर । | ||
तरु गर्दथे अरु | ::तरु गर्दथे अरु मर्मर ॥ | ||
दल गर्दथे सब | दल गर्दथे सब सर्सर । | ||
वन-श्वासमा मृदु | ::वन-श्वासमा मृदु हर्हर ॥ | ||
मृदु चञ्चुका स्वर चिर्निर । | मृदु चञ्चुका स्वर चिर्निर । | ||
वन भर्दथे मुरली स्वर ॥ | ::वन भर्दथे मुरली स्वर ॥ | ||
छवि खिर्निरे तरु फेदमा । | छवि खिर्निरे तरु फेदमा । | ||
वन-वल्लरीतिर देख्दछिन् ॥ | ::वन-वल्लरीतिर देख्दछिन् ॥ | ||
प्रभ् कृष्णको मुसकानमा । | प्रभ् कृष्णको मुसकानमा । | ||
मुरली-मनौोहरको छटा ॥ | ::मुरली-मनौोहरको छटा ॥ | ||
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Revision as of 10:21, 30 April 2025
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नहतै तरङ्ग अरूहरू ।
मनमा भए लहराउँदा ॥
वन-सुन्दरीकन बासना ।
मलया५निलैसित आउँदा ॥
(३३)
अनि नीँद र््रृहरूसँग ।
मिसिई झरी वन-जूनमा ॥
अमृतांशुका कर झैं लघु ।
क्रतुराजका मृदु पातमा ॥
तरुणी सुतिन् कुसुमायिता ।
सपना खुली छावि-संयुता ॥
वन पस्दथे सपना कता ।
मृदु कञ्जमा कुसुमी कता ॥
(३४)
यमुना-विचुम्बित तीरमा ।
अमृतांशुले सुषमायुत ॥
तरुशाखिनी वन-वल्लरी ।
दुद डोरमा तल भर्दथी ॥
तर पीड बन्न बटारिँदी ।
मुरली-मनोहर विन्तिमा ॥
रज झर्दथ्यो सन नर्बर ।
तरु गर्दथे अरु मर्मर ॥
दल गर्दथे सब सर्सर ।
वन-श्वासमा मृदु हर्हर ॥
मृदु चञ्चुका स्वर चिर्निर ।
वन भर्दथे मुरली स्वर ॥
छवि खिर्निरे तरु फेदमा ।
वन-वल्लरीतिर देख्दछिन् ॥
प्रभ् कृष्णको मुसकानमा ।
मुरली-मनौोहरको छटा ॥