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लेखी देखेबुझेसम्म वसन्तमहिमा सब। | लेखी देखेबुझेसम्म वसन्तमहिमा सब। | ||
कविको लेखनी दौड्यो ग्रीष्मवर्णनमा अब।। | कविको लेखनी दौड्यो ग्रीष्मवर्णनमा अब।। | ||
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राम्रो वनबगैंचाको वासन्ती कान्ति मन्द भो। | राम्रो वनबगैंचाको वासन्ती कान्ति मन्द भो। | ||
मानू स्वर्गीय गङ्गाको मधुर स्रोत बन्द भो।। | मानू स्वर्गीय गङ्गाको मधुर स्रोत बन्द भो।। | ||
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पुगे | पुगे शनैः३शनैः सूर्य मध्य आकाशमा अब। | ||
देखायेर पराकाष्ठा उत्थानक्रमको सब।। | देखायेर पराकाष्ठा उत्थानक्रमको सब।। | ||
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प्रतापीको प्रतापाऽग्निशिखा जस्ता कडा दिन। | प्रतापीको प्रतापाऽग्निशिखा जस्ता कडा दिन। | ||
दबाई जगतैलाई अब थाले खडा हुन।। | दबाई जगतैलाई अब थाले खडा हुन।। | ||
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शकेसम्म करद्वारा पृथ्वीको रस खींचन। | शकेसम्म करद्वारा पृथ्वीको रस खींचन। | ||
अविवेकी विजेता झैं सूर्य लागीरहेछन।। | अविवेकी विजेता झैं सूर्य लागीरहेछन।। | ||
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धपक्क भै बलेका छन् घामले दिन बेसरी। | धपक्क भै बलेका छन् घामले दिन बेसरी। | ||
दीपकाऽऽभ्यासमा व्यग्र विद्वान्का इन्द्रियैसरी।। | दीपकाऽऽभ्यासमा व्यग्र विद्वान्का इन्द्रियैसरी।। | ||
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रश्मिका रूपमा ताता वर्षायेर तिखा सिया। | रश्मिका रूपमा ताता वर्षायेर तिखा सिया। | ||
सूर्यले गर्न आँटे कि विश्वगोल छियाछिया?।। | सूर्यले गर्न आँटे कि विश्वगोल छियाछिया?।। | ||
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Revision as of 07:35, 10 April 2025
This page has not been proofread
अथ
ग्रीष्म-विचार
१
लेखी देखेबुझेसम्म वसन्तमहिमा सब।
कविको लेखनी दौड्यो ग्रीष्मवर्णनमा अब।।
२
राम्रो वनबगैंचाको वासन्ती कान्ति मन्द भो।
मानू स्वर्गीय गङ्गाको मधुर स्रोत बन्द भो।।
पुगे शनैः३शनैः सूर्य मध्य आकाशमा अब।
देखायेर पराकाष्ठा उत्थानक्रमको सब।।
४
प्रतापीको प्रतापाऽग्निशिखा जस्ता कडा दिन।
दबाई जगतैलाई अब थाले खडा हुन।।
५
शकेसम्म करद्वारा पृथ्वीको रस खींचन।
अविवेकी विजेता झैं सूर्य लागीरहेछन।।
६
धपक्क भै बलेका छन् घामले दिन बेसरी।
दीपकाऽऽभ्यासमा व्यग्र विद्वान्का इन्द्रियैसरी।।
७
रश्मिका रूपमा ताता वर्षायेर तिखा सिया।
सूर्यले गर्न आँटे कि विश्वगोल छियाछिया?।।