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Revision as of 08:58, 9 April 2025
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अथ ग्रीष्म-विचार
लेखी देखेबुझेसम्म वसन्तमहिमा सब।
कविको लेखनी दौड्यो ग्रीष्मवर्णनमा अब।।
राम्रो वनबगैंचाको वासन्ती कान्ति मन्द भो।
मानू स्वर्गीय गङ्गाको मधुर स्रोत बन्द भो।।
पुगे शनैःशनैः सूर्य मध्य आकाशमा अब।
देखायेर पराकाष्ठा उत्थानक्रमको सब।।
प्रतापीको प्रतापाऽग्निशिखा जस्ता कडा दिन।
दबाई जगतैलाई अब थाले खडा हुन।।
शकेसम्म करद्वारा पृथ्वीको रस खींचन।
अविवेकी विजेता झैं सूर्य लागीरहेछन।।
धपक्क भै बलेका छन् घामले दिन बेसरी।
दीपकाऽऽभ्यासमा व्यग्र विद्वान्का इन्द्रियैसरी।।
रश्मिका रूपमा ताता वर्षायेर तिखा सिया।
सूर्यले गर्न आँटे कि विश्वगोल छियाछिया?।।