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त्यै मालाबाट उड्दो मधुर महकमा रङ्गियो देश सारा | |||
::भाषाको द्वेष गर्ने कृपणमति सबै लाग्न थाले किनारा | |||
चौतर्फी चम्चमायो क्रमसित सब यो भानुको वाग्विलास | |||
::बढ्दो राष्ट्रीयतामा सरस चहकिलो पर्न थाल्यो प्रकाश | |||
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बढ्दो-चढ्दो रसीलो वय लवकुशझैँ राष्ट्र यो शक्तिशाली | |||
::चाहन्थ्यो भित्र उस्को उस नव वयले उच्च शिक्षा-प्रणाली | |||
भेट्टायो भानुभक्त प्रिय गुरु नगिचै वन्य वाल्मीकि तुल्य | |||
::जो यै अध्यात्म रामायण अति रसिलो ग्रन्थ लेख्थे अमूल्य | |||
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भाषामा त्यो हुनाले सहजसित सबै राष्ट्रले पढ्न पायो | |||
::पढ्दा सुन्दा र गुन्दा प्रमुदित मन भो भाव अर्कै उदायो | |||
त्यस्ले कोटि प्रजाको हृदय-बिच मिही ऐक्यको बीज हाल्यो | |||
::यै हाम्रो राष्ट्रभाषा भनि सब दुनियाँ दङ्ग भै भन्न थाल्यो | |||
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वर्षैपिच्छे हजारौँ प्रति उस कृतिका छापिए छापिँदै छन् | |||
::बाँकी काहीँ रहन्नन्, खुसिसँग दुनियाँ नित्य किन्दै लिँदै छन् | |||
निस्कून् लाखौँ करोडौँ अरु नव कविता किन्तु यस्को महत्ता | |||
::खेस्ने छैनन् कसैले जबतक रहला राष्ट्रमा शक्ति सत्ता | |||
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Revision as of 12:18, 18 May 2025
(७)
त्यै मालाबाट उड्दो मधुर महकमा रङ्गियो देश सारा
भाषाको द्वेष गर्ने कृपणमति सबै लाग्न थाले किनारा
चौतर्फी चम्चमायो क्रमसित सब यो भानुको वाग्विलास
बढ्दो राष्ट्रीयतामा सरस चहकिलो पर्न थाल्यो प्रकाश
(८)
बढ्दो-चढ्दो रसीलो वय लवकुशझैँ राष्ट्र यो शक्तिशाली
चाहन्थ्यो भित्र उस्को उस नव वयले उच्च शिक्षा-प्रणाली
भेट्टायो भानुभक्त प्रिय गुरु नगिचै वन्य वाल्मीकि तुल्य
जो यै अध्यात्म रामायण अति रसिलो ग्रन्थ लेख्थे अमूल्य
(९)
भाषामा त्यो हुनाले सहजसित सबै राष्ट्रले पढ्न पायो
पढ्दा सुन्दा र गुन्दा प्रमुदित मन भो भाव अर्कै उदायो
त्यस्ले कोटि प्रजाको हृदय-बिच मिही ऐक्यको बीज हाल्यो
यै हाम्रो राष्ट्रभाषा भनि सब दुनियाँ दङ्ग भै भन्न थाल्यो
(१०)
वर्षैपिच्छे हजारौँ प्रति उस कृतिका छापिए छापिँदै छन्
बाँकी काहीँ रहन्नन्, खुसिसँग दुनियाँ नित्य किन्दै लिँदै छन्
निस्कून् लाखौँ करोडौँ अरु नव कविता किन्तु यस्को महत्ता
खेस्ने छैनन् कसैले जबतक रहला राष्ट्रमा शक्ति सत्ता