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::थियो | ::थियो शिक्षा-दीक्षा ध्वनिमय बडो अद्भुत कडा । | ||
अहो पढ्दा पढ्दै गुरुमय भयो | अहो ! पढ्दा पढ्दै गुरुमय भयो विश्व-विभव | ||
::म कच्चा विद्यार्थी, शकिन सहसा सम्झन सब ॥ | ::म कच्चा विद्यार्थी, शकिन सहसा सम्झन सब ॥ | ||
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कुनै चाहे नङ्गा भइ फगत दङ्गा गरिरहून् | कुनै चाहे नङ्गा भइ फगत दङ्गा गरिरहून् | ||
::कुनै चाहे चङ्गा भइ | ::कुनै चाहे चङ्गा भइ गगन-गङ्गाबिच बहून् । | ||
अँध्यारो स्वप्नाका सुख दुख खुशी भै सब सहू | अँध्यारो स्वप्नाका सुख दुख खुशी भै सब सहू | ||
::सबै भन्दा भिन्नै भइ फगत हाँसी खुश रहू ॥ | ::सबै भन्दा भिन्नै भइ फगत हाँसी खुश रहू ॥ | ||
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घृणाको, निन्दाको सब शिथिल भो बाह्य विषय | घृणाको, निन्दाको सब शिथिल भो बाह्य विषय | ||
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घडी देखा पर्थ्यो गगनबिच अर्धेन्दु विमल | घडी देखा पर्थ्यो गगनबिच अर्धेन्दु विमल | ||
::घडी अग्ला अग्ला हिमशिखर सेता झलमल ॥ | ::घडी अग्ला अग्ला हिमशिखर सेता झलमल ॥ | ||
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Revision as of 12:26, 6 June 2025
९
न चेला त्यो वेला, गगन गुरुजी, शान्त मुहुडा
थियो शिक्षा-दीक्षा ध्वनिमय बडो अद्भुत कडा ।
अहो ! पढ्दा पढ्दै गुरुमय भयो विश्व-विभव
म कच्चा विद्यार्थी, शकिन सहसा सम्झन सब ॥
१०
जबर्जस्ती मेरो अति जरकटे कान पकडी
तपस्याका खोले सकल गुरुले दुर्गम कडी ।
भयो त्यस्ले गर्दा श्रवणपुट मेरो झमझम
पछाडी यो झन्क्यो अमृतमय मीठो स रि ग म ॥
११
कुनै चाहे नङ्गा भइ फगत दङ्गा गरिरहून्
कुनै चाहे चङ्गा भइ गगन-गङ्गाबिच बहून् ।
अँध्यारो स्वप्नाका सुख दुख खुशी भै सब सहू
सबै भन्दा भिन्नै भइ फगत हाँसी खुश रहू ॥
१२
डुब्यो त्यस्तो चालासित किन चराको रगतमा ?
भुली त्यो, निःस्वार्थ प्रणय गर सारा जगतमा ।
त्यसैले त्यो काँढो नयनबिचको झर्छ सहसा
तुरुन्तै देख्नेछौ अनि पछि उज्याला दश दिशा ॥
१३
लियेथेँ त्यो शिक्षा जब अनि घट्यो कष्ट कसला
उदायो निःस्वार्थ-प्रणय-विधुको शीतल कला ।
घृणाको, निन्दाको सब शिथिल भो बाह्य विषय
भयो साह्रै हल्का सुखमय अनासक्त हृदय ॥
१४
जती आँखा चिम्ल्यो किन किन उती लाखन थरी
रसीला उर्लन्थे हृदय-दहमा दृश्य-लहरी ।
घडी देखा पर्थ्यो गगनबिच अर्धेन्दु विमल
घडी अग्ला अग्ला हिमशिखर सेता झलमल ॥