Page:Lalitya bhag 1 ra 2.pdf/100: Difference between revisions
Appearance
→Not proofread: Created page with "<noinclude>{{start center block}}</noinclude> <poem> {{pcn|(८)}} टल्कने चहकिला अति काला भृङ्गको रसमदाऽऽकुल माला । बागमा घुनुनुनू घुमनाले दिग्दिगन्त सब घन्कन थाले ॥ {{pcn|(९)}} वृक्षका मृदुल पल्लव-भित्र खेलदै सरस खेल विचित्र..." |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 3: | Line 3: | ||
{{pcn|(८)}} | {{pcn|(८)}} | ||
टल्कने चहकिला अति काला | टल्कने चहकिला अति काला | ||
भृङ्गको रसमदाऽऽकुल माला । | ::भृङ्गको रसमदाऽऽकुल माला । | ||
बागमा घुनुनुनू घुमनाले | बागमा घुनुनुनू घुमनाले | ||
दिग्दिगन्त सब घन्कन थाले ॥ | ::दिग्दिगन्त सब घन्कन थाले ॥ | ||
{{pcn|(९)}} | {{pcn|(९)}} | ||
वृक्षका मृदुल पल्लव-भित्र | वृक्षका मृदुल पल्लव-भित्र | ||
खेलदै सरस खेल विचित्र । | ::खेलदै सरस खेल विचित्र । | ||
च्याउँ च्याउँ चिडिया खुशि मानी | च्याउँ च्याउँ चिडिया खुशि मानी | ||
बोल्दछन् बहुत सुन्दर वाणी ॥ | ::बोल्दछन् बहुत सुन्दर वाणी ॥ | ||
{{pcn|(१०)}} | {{pcn|(१०)}} | ||
झार, पात, पिपिराहरु नाना | झार, पात, पिपिराहरु नाना | ||
दर्शनीय हरिया मृदु साना । | ::दर्शनीय हरिया मृदु साना । | ||
देखिए धरणिमा बहुमूल्य | देखिए धरणिमा बहुमूल्य | ||
चीनियाँ नरम-रेशम-तुल्य ॥ | ::चीनियाँ नरम-रेशम-तुल्य ॥ | ||
{{pcn|(११)}} | {{pcn|(११)}} | ||
शीत-शुष्क-नलिकामय सारा | शीत-शुष्क-नलिकामय सारा | ||
सारले रहित तुच्छ अँध्यारा । | ::सारले रहित तुच्छ अँध्यारा । | ||
पोखरीहरु भए अब बल्ल | पोखरीहरु भए अब बल्ल | ||
पद्मका कुसुमले झलमल्ल ॥ | ::पद्मका कुसुमले झलमल्ल ॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Revision as of 16:41, 5 May 2025
This page has not been proofread
(८)
टल्कने चहकिला अति काला
भृङ्गको रसमदाऽऽकुल माला ।
बागमा घुनुनुनू घुमनाले
दिग्दिगन्त सब घन्कन थाले ॥
(९)
वृक्षका मृदुल पल्लव-भित्र
खेलदै सरस खेल विचित्र ।
च्याउँ च्याउँ चिडिया खुशि मानी
बोल्दछन् बहुत सुन्दर वाणी ॥
(१०)
झार, पात, पिपिराहरु नाना
दर्शनीय हरिया मृदु साना ।
देखिए धरणिमा बहुमूल्य
चीनियाँ नरम-रेशम-तुल्य ॥
(११)
शीत-शुष्क-नलिकामय सारा
सारले रहित तुच्छ अँध्यारा ।
पोखरीहरु भए अब बल्ल
पद्मका कुसुमले झलमल्ल ॥