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वनकोपिला सपने ठिटी । | वनकोपिला सपने ठिटी । | ||
शिशुकालबाट फुकी छिटी ॥ | ::शिशुकालबाट फुकी छिटी ॥ | ||
अलि लाजदार॒ सञच्चेतता- | अलि लाजदार॒ सञच्चेतता- | ||
सँग भृङ्गको ध्वनि खोज्दथी ॥ | ::सँग भृङ्गको ध्वनि खोज्दथी ॥ | ||
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रसिला हवाहरू खुस्खुस । | रसिला हवाहरू खुस्खुस । | ||
बहँदा थिई अलि मुस्मुस ॥ | ::बहँदा थिई अलि मुस्मुस ॥ | ||
त्तुराजका रवि आउँदा । | त्तुराजका रवि आउँदा । | ||
मृदु प्रेमका छवि छाउँदा ॥ | ::मृदु प्रेमका छवि छाउँदा ॥ | ||
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सपन सुवर्णका । लि | सपन सुवर्णका । लि | ||
च्छुकका उरमा ॥ | ::च्छुकका उरमा ॥ | ||
हँगमा फुटीकन छाउँथे । झ | हँगमा फुटीकन छाउँथे । झ | ||
नेव बैंसका मृद् भावना ॥. | ::नेव बैंसका मृद् भावना ॥. | ||
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सब स्वर्ग झल्झल भै रुँदा । | सब स्वर्ग झल्झल भै रुँदा । | ||
निशिमा छ आँसु वियोगको ॥ | ::निशिमा छ आँसु वियोगको ॥ | ||
विरहाभुका जल-विन्दुले । | विरहाभुका जल-विन्दुले । | ||
अति सुन्ददी वन-मन्दिरा ॥ | ::अति सुन्ददी वन-मन्दिरा ॥ | ||
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Revision as of 10:10, 30 April 2025
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चतुर्दश सर्ग
वनकोपिला सपने ठिटी ।
शिशुकालबाट फुकी छिटी ॥
अलि लाजदार॒ सञच्चेतता-
सँग भृङ्गको ध्वनि खोज्दथी ॥
(१)
रसिला हवाहरू खुस्खुस ।
बहँदा थिई अलि मुस्मुस ॥
त्तुराजका रवि आउँदा ।
मृदु प्रेमका छवि छाउँदा ॥
(२)
सपन सुवर्णका । लि
च्छुकका उरमा ॥
हँगमा फुटीकन छाउँथे । झ
नेव बैंसका मृद् भावना ॥.
(३)
सब स्वर्ग झल्झल भै रुँदा ।
निशिमा छ आँसु वियोगको ॥
विरहाभुका जल-विन्दुले ।
अति सुन्ददी वन-मन्दिरा ॥
(४)