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विषले मत्मतायेका काला काला भुजङ्गको। | विषले मत्मतायेका काला काला भुजङ्गको। | ||
फुङ्कार झैँ बढेको छ दन्दनाहट धर्मको।। | फुङ्कार झैँ बढेको छ दन्दनाहट धर्मको।। | ||
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सन्तापले गरी ज्यादा आकाशै धप्प भैकन। | सन्तापले गरी ज्यादा आकाशै धप्प भैकन। | ||
ज्वालाजाल निकालेर बलने हो कि दन्दन?।। | ज्वालाजाल निकालेर बलने हो कि दन्दन?।। | ||
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त्यो नीलभाग माथिल्लो सारा विश्वकटाहको। | त्यो नीलभाग माथिल्लो सारा विश्वकटाहको। | ||
दागै हो कि त यै चर्का ग्रीष्मका उग्र दाहको?।। | दागै हो कि त यै चर्का ग्रीष्मका उग्र दाहको?।। | ||
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संसारभर ठण्डीको नामै छैन कतैतिर। | संसारभर ठण्डीको नामै छैन कतैतिर। | ||
जता जाऊ उतै खाली गरमीको कडा पिर।। | जता जाऊ उतै खाली गरमीको कडा पिर।। | ||
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घामको नाम पारेर कालले अति उत्कट। | घामको नाम पारेर कालले अति उत्कट। | ||
आफना लयलीलाको देखायो चम्चमावट।। | आफना लयलीलाको देखायो चम्चमावट।। | ||
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गरमीको कडा मुस्लो सल्कायेर सबैतिर। | गरमीको कडा मुस्लो सल्कायेर सबैतिर। | ||
भसक्कै पार्न आँट्यो कि विधिले सृष्टि सुन्दर?।। | भसक्कै पार्न आँट्यो कि विधिले सृष्टि सुन्दर?।। | ||
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जल तात्यो, हवा तात्यो, तात्यो गगन, भूतल। | जल तात्यो, हवा तात्यो, तात्यो गगन, भूतल। | ||
सन्तको सङ्ग झैं यौटावृक्षच्छाया छ शीतल।। | सन्तको सङ्ग झैं यौटावृक्षच्छाया छ शीतल।। | ||
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गर्छन् विश्राम निर्धक्क बटुवा वृक्षका मनि। | गर्छन् विश्राम निर्धक्क बटुवा वृक्षका मनि। | ||
आडमा योग्य नेताको दुनियाँ झैं सुखी बनी।। | आडमा योग्य नेताको दुनियाँ झैं सुखी बनी।। | ||
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जल शुक्तै गयो सारा पृथ्वीबाट घरीघरी। | जल शुक्तै गयो सारा पृथ्वीबाट घरीघरी। | ||
कराल कलिले गर्दा धर्मको महिमासरी।। | कराल कलिले गर्दा धर्मको महिमासरी।। | ||
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Revision as of 07:36, 10 April 2025
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८
विषले मत्मतायेका काला काला भुजङ्गको।
फुङ्कार झैँ बढेको छ दन्दनाहट धर्मको।।
९
सन्तापले गरी ज्यादा आकाशै धप्प भैकन।
ज्वालाजाल निकालेर बलने हो कि दन्दन?।।
१०
त्यो नीलभाग माथिल्लो सारा विश्वकटाहको।
दागै हो कि त यै चर्का ग्रीष्मका उग्र दाहको?।।
११
संसारभर ठण्डीको नामै छैन कतैतिर।
जता जाऊ उतै खाली गरमीको कडा पिर।।
१२
घामको नाम पारेर कालले अति उत्कट।
आफना लयलीलाको देखायो चम्चमावट।।
१३
गरमीको कडा मुस्लो सल्कायेर सबैतिर।
भसक्कै पार्न आँट्यो कि विधिले सृष्टि सुन्दर?।।
१४
जल तात्यो, हवा तात्यो, तात्यो गगन, भूतल।
सन्तको सङ्ग झैं यौटावृक्षच्छाया छ शीतल।।
१५
गर्छन् विश्राम निर्धक्क बटुवा वृक्षका मनि।
आडमा योग्य नेताको दुनियाँ झैं सुखी बनी।।
१६
जल शुक्तै गयो सारा पृथ्वीबाट घरीघरी।
कराल कलिले गर्दा धर्मको महिमासरी।।