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:दर्द बुझेँ चुपचाप सब तिमि मनमा नलेउ सन्ताप । | :दर्द बुझेँ चुपचाप सब तिमि मनमा नलेउ सन्ताप । | ||
:आफनु जीवनसम्म सुधार गरुँला सकेसम्म ॥ | :आफनु जीवनसम्म सुधार गरुँला सकेसम्म ॥ | ||
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:अघितिर पुच्छ घुसारी कविता प्रत्यक्ष लोकमा पारी । | :अघितिर पुच्छ घुसारी कविता प्रत्यक्ष लोकमा पारी । | ||
:गंकन्छौ तिमि यसरी, सुधार होला हरे ! कसरी ! | :गंकन्छौ तिमि यसरी, सुधार होला हरे ! कसरी ! | ||
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:गुणवति ! सुन अबदेखि गन्थन गन्था विकामका लेखी ॥ | :गुणवति ! सुन अबदेखि गन्थन गन्था विकामका लेखी ॥ | ||
:गरनेछैनँ दिमाग पक्का यो चित्तमा राख ॥ | :गरनेछैनँ दिमाग पक्का यो चित्तमा राख ॥ | ||
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:बेस भन्यौ अबदेखि विचारशाली मिठा कुरा लेखी । | :बेस भन्यौ अबदेखि विचारशाली मिठा कुरा लेखी । | ||
:मेरो गरनु सुधार, शिरमा तिमि बोक यो भार ॥ | :मेरो गरनु सुधार, शिरमा तिमि बोक यो भार ॥ | ||
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:पहिले अलिअलि हाँसी नुहिकन पछि बसेर छासी । | :पहिले अलिअलि हाँसी नुहिकन पछि बसेर छासी । | ||
:अर्ति दियौ हितकारी नपाइसकना बडा भारी ॥ | :अर्ति दियौ हितकारी नपाइसकना बडा भारी ॥ | ||
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Latest revision as of 16:50, 21 June 2025
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(३९)
कवि–
दर्द बुझेँ चुपचाप सब तिमि मनमा नलेउ सन्ताप ।
आफनु जीवनसम्म सुधार गरुँला सकेसम्म ॥
(४०)
कविता–
अघितिर पुच्छ घुसारी कविता प्रत्यक्ष लोकमा पारी ।
गंकन्छौ तिमि यसरी, सुधार होला हरे ! कसरी !
(४१)
कवि–
गुणवति ! सुन अबदेखि गन्थन गन्था विकामका लेखी ॥
गरनेछैनँ दिमाग पक्का यो चित्तमा राख ॥
(४२)
कविता–
बेस भन्यौ अबदेखि विचारशाली मिठा कुरा लेखी ।
मेरो गरनु सुधार, शिरमा तिमि बोक यो भार ॥
(४३)
कवि–
पहिले अलिअलि हाँसी नुहिकन पछि बसेर छासी ।
अर्ति दियौ हितकारी नपाइसकना बडा भारी ॥