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Latest revision as of 16:01, 22 June 2025
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वसन्त-कोकिल
(१)
भरी लता-वृक्ष-विषे टनाटन
नवीन लाखौँ फुल पालुवाकन ।
वसन्त आयो कलकण्ठको अब
सुनिन्छ साह्रै कल कण्ठ-गौरव ॥
(२)
अगाडि जो दीन बनी लुकीकन
बिताउँथ्यो केवल दुःखमा दिन ।
अहो !! उही कोकिल हेर आज यो
प्रमोदले पूर्ण महासुखी भयो ॥
(३)
बसी बगैँचा-बिच मोजमा परी
नयाँ कलीला सहकार-मञ्जरी ।
चपाउँदै मस्त भएर बेसरी
कुहू कुहू गर्दछ त्यो घरी-घरी ॥