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रचिकन सब जीव ई यथेष्ट | रचिकन सब जीव ई यथेष्ट | ||
::घट-घटमा रवि झैँ | ::घट-घटमा रवि झैँ स्वयं प्रविष्ट । | ||
यदुपति विभुमा म हुन्छु लीन | यदुपति विभुमा म हुन्छु लीन | ||
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(८)
सितहय रथ-सारथि प्रधान
भइ लिइ चाबुक वाग शोभमान ।
हरिबिच रति होस् म मर्छु, भक्त-
जुन हरि हेरि मरी भए विमुक्त ॥
(९)
मधुर गति, विलास, हास, केलि,
प्रणय-विलोकन पाइ मस्त खेली ।
गरि अनुकरणै मदाऽन्ध सारा
ब्रजरमणी जसमा मिले पियारा ॥
(१०)
गरि मुनि-नृप-वर्गले विशेष-
खचित युधिष्ठिर-यज्ञमा प्रवेश ।
खुशिसित अधिबाट पूज्यमान
प्रकट यहीँ भगवान् विराजमान ॥
(११)
रचिकन सब जीव ई यथेष्ट
घट-घटमा रवि झैँ स्वयं प्रविष्ट ।
यदुपति विभुमा म हुन्छु लीन
भइ भय भेद र मोहले विहीन ॥