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कैलासोपत्यकाको स्फटिकमय महावेदिमा बाघछाला | कैलासोपत्यकाको स्फटिकमय महावेदिमा बाघछाला | ||
बिच्छ्याई, बाँधि पद्माऽऽसन, सब मनका वृत्तिमा गुप्त ताला- | ::बिच्छ्याई, बाँधि पद्माऽऽसन, सब मनका वृत्तिमा गुप्त ताला- | ||
कस्तै, सुस्तै जमाई क्रमसित उरमा बन्ध त्यो उड्डियान | कस्तै, सुस्तै जमाई क्रमसित उरमा बन्ध त्यो उड्डियान | ||
::निःश्वासोच्छ्वास रोकी, तन अचल गरी शैलशृङ्गै समान ॥ | |||
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विश्वव्यापी उज्यालो हृदय-कुहरको केन्द्रमा चेत्त्य चित्त | विश्वव्यापी उज्यालो हृदय-कुहरको केन्द्रमा चेत्त्य चित्त | ||
एकै पारी मिलाई, चिति-जलनिधिमा भै स्वयं एकछत्त । | ::एकै पारी मिलाई, चिति-जलनिधिमा भै स्वयं एकछत्त । | ||
पूर्णाऽऽनन्द-प्रकाश-स्थित शिव भगवान् भक्तिको वश्य जानी | पूर्णाऽऽनन्द-प्रकाश-स्थित शिव भगवान् भक्तिको वश्य जानी | ||
गौरी | ::गौरी झैँ भक्ति गर्ला जुन जन, उसको जन्म हो भाग्यमानी ॥ | ||
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Latest revision as of 20:27, 19 June 2025
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शिव-समाधि
(१)
कैलासोपत्यकाको स्फटिकमय महावेदिमा बाघछाला
बिच्छ्याई, बाँधि पद्माऽऽसन, सब मनका वृत्तिमा गुप्त ताला-
कस्तै, सुस्तै जमाई क्रमसित उरमा बन्ध त्यो उड्डियान
निःश्वासोच्छ्वास रोकी, तन अचल गरी शैलशृङ्गै समान ॥
(२)
विश्वव्यापी उज्यालो हृदय-कुहरको केन्द्रमा चेत्त्य चित्त
एकै पारी मिलाई, चिति-जलनिधिमा भै स्वयं एकछत्त ।
पूर्णाऽऽनन्द-प्रकाश-स्थित शिव भगवान् भक्तिको वश्य जानी
गौरी झैँ भक्ति गर्ला जुन जन, उसको जन्म हो भाग्यमानी ॥