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अघी पनि जन्म | अघी पनि जन्म विते कडोरन | ||
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चपाइ काचा कचिला तिता फल
मचाउँदै व्यर्थ कडा कचिङ्गल ॥
अघी पनि जन्म विते कडोरन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
२०
अरण्य त्यो बाहिर मात्र रम्य छ
फसे पछी भित्र बडो अगम्य छ ॥
बिपत्ति पर्छन् त्यसमा हजारन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
२१
कतै सदा कण्टक-जन्य सङ्कट
कतै लता-वेष्टित झोज झङ्कट ॥
जता दियो दृष्टि उतै त बन्धन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
२२
विषालु विच्छीहरू छन् कतै खडा
कतै अरिङ्गालहरू बडा बडा ॥
सबै खनिन्छन् शिरमा प्रतिक्षण
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
२३