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मलाइ थाली फिर | मलाइ थाली फिर कुत्कुत्याउन | ||
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::म भित्र छू, वाहिर छैन क्यै | ::म भित्र छू, वाहिर छैन क्यै मजा" ॥ | ||
भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन | भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन | ||
::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ |
Latest revision as of 23:57, 20 April 2025
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कहाँ-कहाँबाट कठै !! तहाँ पनी
घुसेर काली कलना-पिशाचिनी ॥
मलाइ थाली फिर कुत्कुत्याउन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
१२
पवित्र यस्तो स्वर-सिन्धुको धनी
कहाँ छ बंशीधर धन्य त्यो भनी ॥
म फेरि थालें सहसा तरङ्गिन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
१३
न झट्ट बंशीधर टक्क भेटियो
न भेटको चाह चटक्क मेटियो ॥
विचार लाग्यो बिचमा बरालिन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
१४
"नजा, नजा, जङ्गलमा नजा, नजा,
म भित्र छू, वाहिर छैन क्यै मजा" ॥
भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
१५