Page:Shakuntala.pdf/160: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
|||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Page status | Page status | ||
- | + | Proofread | |
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | <noinclude>{{start center block}}</noinclude> | ||
<poem> | <poem> | ||
बहुतै तरङ्ग अरूहरू । | |||
::मनमा भए लहराउँदा ॥ | ::मनमा भए लहराउँदा ॥ | ||
वन-सुन्दरीकन बासना । | वन-सुन्दरीकन बासना । | ||
:: | ::मलयाऽनिलैसित आउँदा ॥ | ||
{{pcn|(३३)}} | {{pcn|(३३)}} | ||
अनि नीँद | अनि नीँद रङ्हरूसँग । | ||
::मिसिई झरी वन-जूनमा ॥ | ::मिसिई झरी वन-जूनमा ॥ | ||
अमृतांशुका कर झैं लघु । | अमृतांशुका कर झैं लघु । | ||
:: | ::ऋतुराजका मृदु पातमा ॥ | ||
तरुणी सुतिन् कुसुमायिता । | तरुणी सुतिन् कुसुमायिता । | ||
::सपना खुली | ::सपना खुली छवि-संयुता ॥ | ||
वन पस्दथे सपना कता । | वन पस्दथे सपना कता । | ||
::मृदु | ::मृदु कुञ्जमा कुसुमी कता ॥ | ||
{{pcn|(३४)}} | {{pcn|(३४)}} | ||
Line 20: | Line 20: | ||
::अमृतांशुले सुषमायुत ॥ | ::अमृतांशुले सुषमायुत ॥ | ||
तरुशाखिनी वन-वल्लरी । | तरुशाखिनी वन-वल्लरी । | ||
:: | ::दुइ डोरमा तल झर्दथी ॥ | ||
तर | तर पीङ बन्न बटारिँदी । | ||
::मुरली-मनोहर विन्तिमा ॥ | ::मुरली-मनोहर विन्तिमा ॥ | ||
रज झर्दथ्यो सन | रज झर्दथ्यो सन बर्बर । | ||
::तरु गर्दथे अरु मर्मर ॥ | ::तरु गर्दथे अरु मर्मर ॥ | ||
दल गर्दथे सब सर्सर । | दल गर्दथे सब सर्सर । | ||
::वन-श्वासमा मृदु हर्हर ॥ | ::वन-श्वासमा मृदु हर्हर ॥ | ||
मृदु चञ्चुका स्वर | मृदु चञ्चुका स्वर चिर्बिर । | ||
::वन भर्दथे मुरली स्वर ॥ | ::वन भर्दथे मुरली स्वर ॥ | ||
छवि | छवि छिर्बिरे तरु फेदमा । | ||
::वन-वल्लरीतिर देख्दछिन् ॥ | ::वन-वल्लरीतिर देख्दछिन् ॥ | ||
प्रभु कृष्णको मुसकानमा । | |||
::मुरली- | ::मुरली-मनोहरको छटा ॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> | ||
{{stanza continue}} | {{stanza continue}} |
Latest revision as of 10:13, 2 May 2025
This page has been proofread
बहुतै तरङ्ग अरूहरू ।
मनमा भए लहराउँदा ॥
वन-सुन्दरीकन बासना ।
मलयाऽनिलैसित आउँदा ॥
(३३)
अनि नीँद रङ्हरूसँग ।
मिसिई झरी वन-जूनमा ॥
अमृतांशुका कर झैं लघु ।
ऋतुराजका मृदु पातमा ॥
तरुणी सुतिन् कुसुमायिता ।
सपना खुली छवि-संयुता ॥
वन पस्दथे सपना कता ।
मृदु कुञ्जमा कुसुमी कता ॥
(३४)
यमुना-विचुम्बित तीरमा ।
अमृतांशुले सुषमायुत ॥
तरुशाखिनी वन-वल्लरी ।
दुइ डोरमा तल झर्दथी ॥
तर पीङ बन्न बटारिँदी ।
मुरली-मनोहर विन्तिमा ॥
रज झर्दथ्यो सन बर्बर ।
तरु गर्दथे अरु मर्मर ॥
दल गर्दथे सब सर्सर ।
वन-श्वासमा मृदु हर्हर ॥
मृदु चञ्चुका स्वर चिर्बिर ।
वन भर्दथे मुरली स्वर ॥
छवि छिर्बिरे तरु फेदमा ।
वन-वल्लरीतिर देख्दछिन् ॥
प्रभु कृष्णको मुसकानमा ।
मुरली-मनोहरको छटा ॥