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दण्डवत्कन गरी निहुरेर | दण्डवत्कन गरी निहुरेर | ||
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मनोलड्डु
(१)
चन्द्रचूड ! जगदीश ! महेश !
दीननाथ ! शिव ! संयमिभेष !
दण्डवत्कन गरी निहुरेर
गर्दछू म विनति प्रभुनेर ॥
(२)
लोभलाई अगुवा लिइ साथी
यो अगाध भव-सागर-माथि ।
दौडँदा बहुत जन्म बिताएँ
बल्ल आज भगवान् ! सुर पाएँ ॥
(३)
छुट्ट हूँ म अब ता जनदेखि
नासियोस अघिदेखि सब शेखी ।
चित्तवृत्ति प्रभुमा ठहरोस
लोभरूपि सँगि दूर सरोस ॥