Page:Prometheus.pdf/9: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
|||
Page status | Page status | ||
- | + | Proofread | |
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 5: | Line 5: | ||
{{pcn|(१)}} | {{pcn|(१)}} | ||
पर्वतशिरमा सौदामिनीसरि, | पर्वतशिरमा सौदामिनीसरि, | ||
जुपिटरका जटा- | जुपिटरका जटा-झटकमा जात । | ||
मातर् सरस्वति ! अमर-वर्मिणी ! | मातर् सरस्वति ! अमर-वर्मिणी ! | ||
यूनानी | यूनानी शारदे आऊ ! | ||
वीरानुरागिणी द्वितीय-लोचनी ! | वीरानुरागिणी द्वितीय-लोचनी ! | ||
तुहिनाऽचलका शीतल छायामा, | |||
महावीरको दिव्य संगीत | महावीरको दिव्य संगीत सुनाऊ । | ||
{{pcn|(२)}} | {{pcn|(२)}} | ||
कनकतंत्रीमा मधुरलय-मंत्री | कनकतंत्रीमा मधुरलय-मंत्री | ||
अयि | अयि ! तमोहंत्री तिमी ! ऊर्घ्वदृशी, | ||
जाम्बूनद-प्रपातमा अभिनव प्रभातको, | |||
पोख | पोख विहग विहाग सुराग यहाँ, | ||
दिव्य संगीतमा, मदिरोन्मत्त । | दिव्य संगीतमा, मदिरोन्मत्त । | ||
जन-मन-खग- | जन-मन-खग-दृगकी प्रत्यूषासरि, | ||
ए वीणावादिनी जननी ! | ए वीणावादिनी जननी ! | ||
Line 25: | Line 25: | ||
सुन्दर, सित अलखामा, विधुकरले | सुन्दर, सित अलखामा, विधुकरले | ||
लसित तुहिन झैँ स्मितवदनी, | लसित तुहिन झैँ स्मितवदनी, | ||
शरदीय शान्तिमा | शरदीय शान्तिमा शुभ, स्वच्छन्द, | ||
यूनानी शिखरमा अभ्रविमंडित | यूनानी शिखरमा अभ्रविमंडित | ||
बस्छ्यौ, एकाकिनी अदृष्ट मातमा । | |||
बोल । | |||
{{pcn|(४)}} | {{pcn|(४)}} | ||
बोल रे | बोल रे भाषाअधिष्ठात्री ! | ||
तिमीलाई | तिमीलाई छ ज्ञान यूनानको महान् । | ||
यूनान ! | यूनान !– ती वीर-जनयित्री सुन्दरी | ||
वरुणविचुंबित त्रयपार्श्वा, | |||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> | ||
{{stanza continue}} | {{stanza continue}} |
Revision as of 23:35, 23 June 2025
This page has been proofread
प्रथम सर्ग
(१)
पर्वतशिरमा सौदामिनीसरि,
जुपिटरका जटा-झटकमा जात ।
मातर् सरस्वति ! अमर-वर्मिणी !
यूनानी शारदे आऊ !
वीरानुरागिणी द्वितीय-लोचनी !
तुहिनाऽचलका शीतल छायामा,
महावीरको दिव्य संगीत सुनाऊ ।
(२)
कनकतंत्रीमा मधुरलय-मंत्री
अयि ! तमोहंत्री तिमी ! ऊर्घ्वदृशी,
जाम्बूनद-प्रपातमा अभिनव प्रभातको,
पोख विहग विहाग सुराग यहाँ,
दिव्य संगीतमा, मदिरोन्मत्त ।
जन-मन-खग-दृगकी प्रत्यूषासरि,
ए वीणावादिनी जननी !
(३)
तिमी, जो,
सुन्दर, सित अलखामा, विधुकरले
लसित तुहिन झैँ स्मितवदनी,
शरदीय शान्तिमा शुभ, स्वच्छन्द,
यूनानी शिखरमा अभ्रविमंडित
बस्छ्यौ, एकाकिनी अदृष्ट मातमा ।
बोल ।
(४)
बोल रे भाषाअधिष्ठात्री !
तिमीलाई छ ज्ञान यूनानको महान् ।
यूनान !– ती वीर-जनयित्री सुन्दरी
वरुणविचुंबित त्रयपार्श्वा,