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सुन सफा | सुन सफा दुनियाँतिर आउँदी । | ||
::अब त्यहाँ मुनियाँ वनकी कथा ॥ | ::अब त्यहाँ मुनियाँ वनकी कथा ॥ | ||
कति फुरुक्क फरक्क उ फर्किई । | कति फुरुक्क फरक्क उ फर्किई । | ||
::मधुर शब्द सुनाउन | ::मधुर शब्द सुनाउन बिर्सिई ॥ | ||
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किनकि ती कनकाभ सुकालमा । | किनकि ती कनकाभ सुकालमा । | ||
:: | ::मधुरपङ्ख चलीकन गाउँथिन् ॥ | ||
सदृश गाउँछ स्वर्णचरो दिन । | |||
:: | ::जलधि चुम्बनलाई उडी पर ॥ | ||
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अविदिता सुषमा सुरदेशकी । | अविदिता सुषमा सुरदेशकी । | ||
:: | ::श्रवणमा मनको मृदु मर्मरी ॥ | ||
तुहिन हेम हुँदा गिरि कानन- | तुहिन हेम हुँदा गिरि कानन- | ||
::तिर सुदूर झरेसरि निर्भर ॥ | ::तिर सुदूर झरेसरि निर्भर ॥ | ||
मधुर पड्ख प्रचारण | मधुर पड्ख प्रचारण गर्दछिन् । | ||
::जब धरातिर ती तल | ::जब धरातिर ती तल झर्दछिन् ॥ | ||
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नव अलौकिक वाद्यहरू भरी । | नव अलौकिक वाद्यहरू भरी । | ||
::नसुनिने मृदुल स्वर-मञ्जरी ॥ | ::नसुनिने मृदुल स्वर-मञ्जरी ॥ | ||
कवि | कवि बनेर सुनेसरि बागमा । | ||
::मृदुलको कुसुमाकर आउँदा ॥ | ::मृदुलको कुसुमाकर आउँदा ॥ | ||
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म त अहो | म त अहो अब बढ्न कठोर भो । | ||
::मृदुलका | ::मृदुलका सब शब्द मिलन् कहाँ ॥ | ||
वदन दृश्य भई अब लेखनी | वदन दृश्य भई अब लेखनी । | ||
::लटमुखासरि हेर्दछ मोहनी ॥ | ::लटमुखासरि हेर्दछ मोहनी ॥ | ||
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Latest revision as of 19:40, 10 June 2025
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सुन सफा दुनियाँतिर आउँदी ।
अब त्यहाँ मुनियाँ वनकी कथा ॥
कति फुरुक्क फरक्क उ फर्किई ।
मधुर शब्द सुनाउन बिर्सिई ॥
(४५)
किनकि ती कनकाभ सुकालमा ।
मधुरपङ्ख चलीकन गाउँथिन् ॥
सदृश गाउँछ स्वर्णचरो दिन ।
जलधि चुम्बनलाई उडी पर ॥
(४६)
अविदिता सुषमा सुरदेशकी ।
श्रवणमा मनको मृदु मर्मरी ॥
तुहिन हेम हुँदा गिरि कानन-
तिर सुदूर झरेसरि निर्भर ॥
मधुर पड्ख प्रचारण गर्दछिन् ।
जब धरातिर ती तल झर्दछिन् ॥
(४७)
नव अलौकिक वाद्यहरू भरी ।
नसुनिने मृदुल स्वर-मञ्जरी ॥
कवि बनेर सुनेसरि बागमा ।
मृदुलको कुसुमाकर आउँदा ॥
(४८)
म त अहो अब बढ्न कठोर भो ।
मृदुलका सब शब्द मिलन् कहाँ ॥
वदन दृश्य भई अब लेखनी ।
लटमुखासरि हेर्दछ मोहनी ॥
(४९)