Page:Bhikari.pdf/47: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
|||
Page status | Page status | ||
- | + | Proofread | |
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
{{center|{{larger|'''वसन्त'''}}}} | {{center|{{larger|'''वसन्त'''}}}} | ||
{{center block| | |||
<poem> | <poem> | ||
१ | १ | ||
Line 6: | Line 7: | ||
सौन्दर्यको मृदुल मोहनि नै पलायो । | सौन्दर्यको मृदुल मोहनि नै पलायो । | ||
फुल्तू पलाउनु छ खालि समीर चल्छ | फुल्तू पलाउनु छ खालि समीर चल्छ | ||
आनन्दको लहरतुल्य सुवास | आनन्दको लहरतुल्य सुवास छर्दै ॥ | ||
२ | २ | ||
बैंसालु बाग हरियो, दिइ रङ्ग नाना | बैंसालु बाग हरियो, दिइ रङ्ग नाना | ||
पाएर जागृति नवीन, फुलेर हाँस्यो । | पाएर जागृति नवीन, फुलेर हाँस्यो । | ||
बोल्यो | बोल्यो वसन्त अब कोकिलमा सुरीलो | ||
मीठो रहस्य वनको दुइ शब्दभित्र ॥ | मीठो रहस्य वनको दुइ शब्दभित्र ॥ | ||
३ | ३ | ||
क्या चारु शीतल | क्या चारु शीतल प्रवाह हिलाइ चल्छ | ||
हाँगा, जहाँ गई भँगेरि | हाँगा, जहाँ गई भँगेरि फुरुक्क पर्छे । | ||
क्या लालि लोचन- | क्या लालि लोचन-विलोचन त्यो गुलाबी | ||
हेर्छ जहाँ पुतलि दिव्य कला फुलेको ॥ | हेर्छ जहाँ पुतलि दिव्य कला फुलेको ॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
}} |
Revision as of 11:53, 28 January 2025
This page has been proofread
वसन्त
१
आयो वसन्त अब, जादु अनन्त फैल्यो
सौन्दर्यको मृदुल मोहनि नै पलायो ।
फुल्तू पलाउनु छ खालि समीर चल्छ
आनन्दको लहरतुल्य सुवास छर्दै ॥
२
बैंसालु बाग हरियो, दिइ रङ्ग नाना
पाएर जागृति नवीन, फुलेर हाँस्यो ।
बोल्यो वसन्त अब कोकिलमा सुरीलो
मीठो रहस्य वनको दुइ शब्दभित्र ॥
३
क्या चारु शीतल प्रवाह हिलाइ चल्छ
हाँगा, जहाँ गई भँगेरि फुरुक्क पर्छे ।
क्या लालि लोचन-विलोचन त्यो गुलाबी
हेर्छ जहाँ पुतलि दिव्य कला फुलेको ॥