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ग्राम्य गानले | ग्राम्य गानले पवित्र । | ||
::ओठसाथ शुद्ध भित्र ॥ | ::ओठसाथ शुद्ध भित्र ॥ | ||
पर्ण-नाकसत्य-पाक । | पर्ण-नाकसत्य-पाक । | ||
:: | ::शाककोष द्रुपताक ॥ | ||
प्रात चञ्चुले | प्रात चञ्चुले प्रबुद्ध । | ||
::साँझ लाल | ::साँझ लाल कर्मशुद्ध ॥ | ||
सौख्यपूर्ण बाल वृद्ध । | |||
:: | ::इन्द्र-वृष्टिले समृद्ध ॥ | ||
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स्वर्ग अल्पमा रहेर । | स्वर्ग अल्पमा रहेर । | ||
::ती वसुन्धरा दुहेर ॥ | ::ती वसुन्धरा दुहेर ॥ | ||
रूप रङ्ग हेर फेर | रूप रङ्ग हेर फेर । | ||
::गर्दछन् | ::गर्दछन् मनोज्ञ हेर ! | ||
दीन देह दीन वस्त्र । | दीन देह दीन वस्त्र । | ||
::हातमा | ::हातमा अहिंस शस्त्र ॥ | ||
दूर दूर कालबाट । | दूर दूर कालबाट । | ||
::गान | ::गान हृद्-प्रकोष लेर ॥ | ||
वारि-वृष्टि गीततुल्य । | वारि-वृष्टि गीततुल्य । | ||
:: | ::जोड्दछन् खुशी बनेर ॥ | ||
मच्चिँदै कतै | मच्चिँदै कतै कहीं त । | ||
::मेघतर्फ दृष्टि देर ॥ | ::मेघतर्फ दृष्टि देर ॥ | ||
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हेर हेर सूक्ष्म | हेर हेर सूक्ष्म सर्र! | ||
::लाल हैम रङ्ग चढ्छ ॥ | ::लाल हैम रङ्ग चढ्छ ॥ | ||
अस्त | अस्त शैलको किनार । | ||
::लम्बिए | ::लम्बिए मेघ अड्छ ॥ | ||
खुड्किला बनेर कान्ति । | |||
::स्वर्ग हर्म्यतर्फ चढ्छ ॥ | ::स्वर्ग हर्म्यतर्फ चढ्छ ॥ | ||
जो | जो तला तला बनेर । | ||
::झल्ल झिल्ल | ::झल्ल झिल्ल बन्छ जल्छ ॥ | ||
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Latest revision as of 22:11, 24 May 2025
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ग्राम्य गानले पवित्र ।
ओठसाथ शुद्ध भित्र ॥
पर्ण-नाकसत्य-पाक ।
शाककोष द्रुपताक ॥
प्रात चञ्चुले प्रबुद्ध ।
साँझ लाल कर्मशुद्ध ॥
सौख्यपूर्ण बाल वृद्ध ।
इन्द्र-वृष्टिले समृद्ध ॥
(९)
स्वर्ग अल्पमा रहेर ।
ती वसुन्धरा दुहेर ॥
रूप रङ्ग हेर फेर ।
गर्दछन् मनोज्ञ हेर !
दीन देह दीन वस्त्र ।
हातमा अहिंस शस्त्र ॥
दूर दूर कालबाट ।
गान हृद्-प्रकोष लेर ॥
वारि-वृष्टि गीततुल्य ।
जोड्दछन् खुशी बनेर ॥
मच्चिँदै कतै कहीं त ।
मेघतर्फ दृष्टि देर ॥
(१०)
हेर हेर सूक्ष्म सर्र!
लाल हैम रङ्ग चढ्छ ॥
अस्त शैलको किनार ।
लम्बिए मेघ अड्छ ॥
खुड्किला बनेर कान्ति ।
स्वर्ग हर्म्यतर्फ चढ्छ ॥
जो तला तला बनेर ।
झल्ल झिल्ल बन्छ जल्छ ॥
(११)