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जय जगदीश्वर ! मनको रहमा | जय जगदीश्वर ! मनको रहमा | ||
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मधुर ध्वनिको श्रवण-विवरमा | मधुर ध्वनिको श्रवण-विवरमा | ||
रेखा खिचियो पञ्चम सुरमा । | ::रेखा खिचियो पञ्चम सुरमा । | ||
जति जति डुबिकन हेरेँ भित्र | जति जति डुबिकन हेरेँ भित्र | ||
यति उति पाएँ भाव पवित्र ॥ | ::यति उति पाएँ भाव पवित्र ॥ | ||
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Revision as of 16:44, 5 May 2025
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अरूणोदय
(१)
जय जगदीश्वर ! मनको रहमा
शून्य गगनमय भित्री तहमा ।
पलपल शीतल कलना-लहरी
निस्कन लागे ठहरी ठहरी ॥
(२)
मधुर ध्वनिको श्रवण-विवरमा
रेखा खिचियो पञ्चम सुरमा ।
जति जति डुबिकन हेरेँ भित्र
यति उति पाएँ भाव पवित्र ॥