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Revision as of 20:51, 19 April 2025
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श्रीः
श्रीगौरीशङ्कराभ्यन्नमः
बृद्धिविनोदको
पहिला विनोद
कहाँ थियो वास ? तँ को? म को थियें ?
प्रपञ्च के हो ? किन देह यो लियें ?
कहाँ छ जानू ? कुन साथ ली कन ?
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
१
बिसाइ कुंलो विषयाभिलाषको
विवेक गर्दा उस दिव्य वासको ॥
चमक्क चंक्यो बिजुली विलक्षण
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
२
मुसाफिरी सामल सल्ल पोखियो
उठाउने होस हवास रोकियो ॥
म हेर्न थालें असरल्ल भैकन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
३