Page:Buddhibinodko pahila binod.pdf/24: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
|||
Page status | Page status | ||
- | + | Problematic | |
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | <noinclude>{{start center block}}</noinclude> | ||
<poem> | <poem> | ||
कहाँ थियो वास ? कठै | कहाँ थियो वास ? कठै !! कहाँ झरें ? | ||
::कसो हुँदा भीषण सिन्धुमा परें ? | ::कसो हुँदा भीषण सिन्धुमा परें ? | ||
भनी म लागें फिर वास संझन | भनी म लागें फिर वास संझन | ||
Line 7: | Line 7: | ||
{{pcn|६८}} | {{pcn|६८}} | ||
‘नजा, नजा, त्यो परिपञ्चमा | ‘नजा, नजा, त्यो परिपञ्चमा नजा, | ||
::म भित्र छू बाहिर छैन क्यै मजा” ॥ | ::म भित्र छू बाहिर छैन क्यै मजा” ॥ | ||
भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन | भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन |
Revision as of 09:03, 18 April 2025
There was a problem when proofreading this page
कहाँ थियो वास ? कठै !! कहाँ झरें ?
कसो हुँदा भीषण सिन्धुमा परें ?
भनी म लागें फिर वास संझन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६८
‘नजा, नजा, त्यो परिपञ्चमा नजा,
म भित्र छू बाहिर छैन क्यै मजा” ॥
भनेर घन्क्यो फिर बाँशुरी घन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६९
सुनेर यस्तो म फरक्क फर्कदा
कुतर्कको तार मरक्क मर्कदा ॥
झलक्क झल्क्यो चटकी अगंपन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
७०
दुरन्त त्यो भास दुरन्त जङ्गल
दुरन्त त्यो सागर दु:ख सङ्कुल ॥
गडेर हेर्दा तँ सिवाय देखिन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
७१