Page:Buddhibinodko pahila binod.pdf/14: Difference between revisions
Appearance
→Not proofread: Created page with "<noinclude>{{start center block}}</noinclude> <poem> मशान दुर्गन्धि कतै भयङ्कर कतै खडा प्रेत पिशाचको डर ॥ कतै चिता जल्दछ घोर दन्दन तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ {{pcn|२८}} बनेर त्यस्तो बनतर्फ लम्पट पटक्क बिर्सी परिणाम..." |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 2: | Line 2: | ||
<poem> | <poem> | ||
मशान दुर्गन्धि कतै भयङ्कर | मशान दुर्गन्धि कतै भयङ्कर | ||
कतै खडा प्रेत पिशाचको डर ॥ | ::कतै खडा प्रेत पिशाचको डर ॥ | ||
कतै चिता जल्दछ घोर दन्दन | कतै चिता जल्दछ घोर दन्दन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|२८}} | {{pcn|२८}} | ||
बनेर त्यस्तो बनतर्फ लम्पट | बनेर त्यस्तो बनतर्फ लम्पट | ||
पटक्क बिर्सी परिणाम सङ्कट ॥ | ::पटक्क बिर्सी परिणाम सङ्कट ॥ | ||
छटाउने मोह-कटाहमा किन ? | छटाउने मोह-कटाहमा किन ? | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|२९}} | {{pcn|२९}} | ||
विशाल तृष्णामय दीर्घ जाल छ | विशाल तृष्णामय दीर्घ जाल छ | ||
स्वयं मिकारी बिकराल काल छ ॥ | ::स्वयं मिकारी बिकराल काल छ ॥ | ||
फसे पछी फेरि शकिन्न फुत्कन | फसे पछी फेरि शकिन्न फुत्कन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|३०}} | {{pcn|३०}} | ||
नयाँ-नयाँ भेष लिदै बिसाउँदै | नयाँ-नयाँ भेष लिदै बिसाउँदै | ||
घडी बडो दङ्ग हुँदै घडी रुँदै ॥ | ::घडी बडो दङ्ग हुँदै घडी रुँदै ॥ | ||
अघी कती कल्प बिते घुमीकन | अघी कती कल्प बिते घुमीकन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|३१}} | {{pcn|३१}} | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Revision as of 09:45, 17 April 2025
This page has not been proofread
मशान दुर्गन्धि कतै भयङ्कर
कतै खडा प्रेत पिशाचको डर ॥
कतै चिता जल्दछ घोर दन्दन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
२८
बनेर त्यस्तो बनतर्फ लम्पट
पटक्क बिर्सी परिणाम सङ्कट ॥
छटाउने मोह-कटाहमा किन ?
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
२९
विशाल तृष्णामय दीर्घ जाल छ
स्वयं मिकारी बिकराल काल छ ॥
फसे पछी फेरि शकिन्न फुत्कन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
३०
नयाँ-नयाँ भेष लिदै बिसाउँदै
घडी बडो दङ्ग हुँदै घडी रुँदै ॥
अघी कती कल्प बिते घुमीकन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
३१