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→Not proofread: Created page with "<noinclude>{{start center block}}</noinclude> <poem> सफा सुरीलो स्वर-माधुरी भरी घनक्क घन्क्यो फिर दिव्य बाँशुरी ॥ हुँदै-गयो भित्र अपूर्व रञ्जन तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥| {{pcn|४}} गल्यो पलामा अभिमानको मल खुल्यो अनौ..." |
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सफा सुरीलो स्वर-माधुरी भरी | सफा सुरीलो स्वर-माधुरी भरी | ||
घनक्क घन्क्यो फिर दिव्य बाँशुरी ॥ | ::घनक्क घन्क्यो फिर दिव्य बाँशुरी ॥ | ||
हुँदै-गयो भित्र अपूर्व रञ्जन | हुँदै-गयो भित्र अपूर्व रञ्जन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥| | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥| | ||
{{pcn|४}} | {{pcn|४}} | ||
गल्यो पलामा अभिमानको मल | गल्यो पलामा अभिमानको मल | ||
खुल्यो अनौठा-सित कान कोमल ॥ | ::खुल्यो अनौठा-सित कान कोमल ॥ | ||
विचार लाग्यो स्वरमा रमाउन | विचार लाग्यो स्वरमा रमाउन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
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मिले सबै इन्द्रिय टप्प कानमा | मिले सबै इन्द्रिय टप्प कानमा | ||
विलीन भो कान अखण्ड तानमा ॥ | ::विलीन भो कान अखण्ड तानमा ॥ | ||
प्रफुल्ल भो जर्जर जीर्ण जीवन | प्रफुल्ल भो जर्जर जीर्ण जीवन | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
{{pcn|६}} | {{pcn|६}} | ||
जती मिहीं त्यो स्वर-माधुरी सुनें | जती मिहीं त्यो स्वर-माधुरी सुनें | ||
उती उसैमा लबलीन झैँ बनें ॥ | ::उती उसैमा लबलीन झैँ बनें ॥ | ||
रहेछ त्यस्तो कुन मोहनीपन ? | रहेछ त्यस्तो कुन मोहनीपन ? | ||
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ::तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥ | ||
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Revision as of 09:43, 17 April 2025
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सफा सुरीलो स्वर-माधुरी भरी
घनक्क घन्क्यो फिर दिव्य बाँशुरी ॥
हुँदै-गयो भित्र अपूर्व रञ्जन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥|
४
गल्यो पलामा अभिमानको मल
खुल्यो अनौठा-सित कान कोमल ॥
विचार लाग्यो स्वरमा रमाउन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
५
मिले सबै इन्द्रिय टप्प कानमा
विलीन भो कान अखण्ड तानमा ॥
प्रफुल्ल भो जर्जर जीर्ण जीवन
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
६
जती मिहीं त्यो स्वर-माधुरी सुनें
उती उसैमा लबलीन झैँ बनें ॥
रहेछ त्यस्तो कुन मोहनीपन ?
तँलाइ मालुं छ कि ? यो कुरा मन ! ॥
७