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लुगामाथि लुगा खाप आगो ताप घरीघरी। | लुगामाथि लुगा खाप आगो ताप घरीघरी। | ||
स्यूस्यूस्यू नगरी तेसै के जाला माघको झरी?।। | स्यूस्यूस्यू नगरी तेसै के जाला माघको झरी?।। | ||
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काम सातोलिने मात्र, नाम सातोदिने झरी। | काम सातोलिने मात्र, नाम सातोदिने झरी। | ||
कति राम्रो मिलेको छ बाहिरी शब्दमाधुरी।। | कति राम्रो मिलेको छ बाहिरी शब्दमाधुरी।। | ||
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हिमानी वयले पूर्ण दिव्य पुत्री हिमालकी। | हिमानी वयले पूर्ण दिव्य पुत्री हिमालकी। | ||
झरीको झ्याल खोलेर हेर्दछिन् आडमा लुकी।। | झरीको झ्याल खोलेर हेर्दछिन् आडमा लुकी।। | ||
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तिर्सनाजाल झैं लम्बा पन्छिंदा त्यो कडा झरी। | तिर्सनाजाल झैं लम्बा पन्छिंदा त्यो कडा झरी। | ||
कान्तिले दिन झल्कन्छ शान्तिपूर्ण मनैसरी।। | कान्तिले दिन झल्कन्छ शान्तिपूर्ण मनैसरी।। | ||
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ठण्डीका पिरले मानू हिम आफैं उँधोतिर। | ठण्डीका पिरले मानू हिम आफैं उँधोतिर। | ||
बसाइँ बस्न आयो कि बनाई काँठमा घर?।। | बसाइँ बस्न आयो कि बनाई काँठमा घर?।। | ||
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नगीचको रुखो डाँडो हिम पर्दा हिमालको। | नगीचको रुखो डाँडो हिम पर्दा हिमालको। | ||
देखिन्छ फेटा बाँधेको मूर्ति झैं उग्र कालको।। | देखिन्छ फेटा बाँधेको मूर्ति झैं उग्र कालको।। | ||
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दाह्रातुल्य चुचे ढुङ्गा, दण्ड झैं धूपिका रुख। | दाह्रातुल्य चुचे ढुङ्गा, दण्ड झैं धूपिका रुख। | ||
बायेको पहरारूप चौतर्फी गहिरो मुख।। | बायेको पहरारूप चौतर्फी गहिरो मुख।। | ||
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हिमाचल नदीरूप पुत्रीलाई धमाधम। | हिमाचल नदीरूप पुत्रीलाई धमाधम। | ||
यथेच्छ दिन लाग्यो कि पेवाको रूपमा हिम?।। | यथेच्छ दिन लाग्यो कि पेवाको रूपमा हिम?।। | ||
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सारा नदनदी सेतो काँठो सलिलमा परी। | सारा नदनदी सेतो काँठो सलिलमा परी। | ||
देखिन्छन् सुकिला राम्रा श्रीशुक्लागण्डकीसरी।। | देखिन्छन् सुकिला राम्रा श्रीशुक्लागण्डकीसरी।। | ||
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Revision as of 09:26, 11 April 2025
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४३
लुगामाथि लुगा खाप आगो ताप घरीघरी।
स्यूस्यूस्यू नगरी तेसै के जाला माघको झरी?।।
४४
काम सातोलिने मात्र, नाम सातोदिने झरी।
कति राम्रो मिलेको छ बाहिरी शब्दमाधुरी।।
४५
हिमानी वयले पूर्ण दिव्य पुत्री हिमालकी।
झरीको झ्याल खोलेर हेर्दछिन् आडमा लुकी।।
४६
तिर्सनाजाल झैं लम्बा पन्छिंदा त्यो कडा झरी।
कान्तिले दिन झल्कन्छ शान्तिपूर्ण मनैसरी।।
४७
ठण्डीका पिरले मानू हिम आफैं उँधोतिर।
बसाइँ बस्न आयो कि बनाई काँठमा घर?।।
४८
नगीचको रुखो डाँडो हिम पर्दा हिमालको।
देखिन्छ फेटा बाँधेको मूर्ति झैं उग्र कालको।।
४९
दाह्रातुल्य चुचे ढुङ्गा, दण्ड झैं धूपिका रुख।
बायेको पहरारूप चौतर्फी गहिरो मुख।।
५०
हिमाचल नदीरूप पुत्रीलाई धमाधम।
यथेच्छ दिन लाग्यो कि पेवाको रूपमा हिम?।।
५१
सारा नदनदी सेतो काँठो सलिलमा परी।
देखिन्छन् सुकिला राम्रा श्रीशुक्लागण्डकीसरी।।