Page:Ritubichar.pdf/69: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
<noinclude>{{start center block}}</noinclude> | <noinclude>{{start center block}}</noinclude> | ||
<poem> | <poem> | ||
{{pcn|}} | {{pcn|२५}} | ||
पानी कठै छुनासाथ असाध्य ठिहिर्याउँछ। | पानी कठै छुनासाथ असाध्य ठिहिर्याउँछ। | ||
बिच्छीका डङ्कको ज्वाला तालुसम्म पुर्याउँछ।। | बिच्छीका डङ्कको ज्वाला तालुसम्म पुर्याउँछ।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|२६}} | ||
जीवको जीवनाऽऽधार सूर्य, अग्नि, रुवा, उन। | जीवको जीवनाऽऽधार सूर्य, अग्नि, रुवा, उन। | ||
नपाये चारमा यौटा बन्छ निर्जीव जीवन।। | नपाये चारमा यौटा बन्छ निर्जीव जीवन।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|२७}} | ||
आकाश रुँदिंदै आयो केही मैलोपना धरी। | आकाश रुँदिंदै आयो केही मैलोपना धरी। | ||
भित्री कुकर्मचिन्ताले सतायेको मनैसरी।। | भित्री कुकर्मचिन्ताले सतायेको मनैसरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|२८}} | ||
रुँदियेका दिनै सारा बिकम्बा छन् कठैबरी | रुँदियेका दिनै सारा बिकम्बा छन् कठैबरी | ||
दुर्भाग्य दोषले ज्यादा दबायेका गुणीसरी।। | दुर्भाग्य दोषले ज्यादा दबायेका गुणीसरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|२९}} | ||
अँध्यारो रुँदले गर्दा अँध्यारामा बिते दिन। | अँध्यारो रुँदले गर्दा अँध्यारामा बिते दिन। | ||
उज्यालो मुक्तचेष्टा झैं नष्ट भो सूर्यदर्शन।। | उज्यालो मुक्तचेष्टा झैं नष्ट भो सूर्यदर्शन।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|३०}} | ||
रुँदका रूपमा यद्वा शीतव्याकुल लोकको। | रुँदका रूपमा यद्वा शीतव्याकुल लोकको। | ||
आकाशमा गिर्यो लामू पर्दा मलिन शोकको।। | आकाशमा गिर्यो लामू पर्दा मलिन शोकको।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|३१}} | ||
हिमको तकिया तानी ओढी त्यो रुँदसीरक। | हिमको तकिया तानी ओढी त्यो रुँदसीरक। | ||
आफैं शिशिर लेट्यो कि पन्छाई रविदीपक?।। | आफैं शिशिर लेट्यो कि पन्छाई रविदीपक?।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|३२}} | ||
हटदैन बिना बूँद मैलो रुँद कसै गरी। | हटदैन बिना बूँद मैलो रुँद कसै गरी। | ||
आँशु केही नवर्षाई शोक जान्थ्यो कहाँ टरी।। | आँशु केही नवर्षाई शोक जान्थ्यो कहाँ टरी।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|३३}} | ||
दिक्कगर्छ सबैलाई माघको सिम्सिमे झरी। | दिक्कगर्छ सबैलाई माघको सिम्सिमे झरी। | ||
ज्यादा कचकचे चाङ्ने घरखोते बुढोसरी।। | ज्यादा कचकचे चाङ्ने घरखोते बुढोसरी।। | ||
</poem> | </poem> | ||
<noinclude>{{end center block}}</noinclude> | <noinclude>{{end center block}}</noinclude> |
Revision as of 09:24, 11 April 2025
This page has not been proofread
२५
पानी कठै छुनासाथ असाध्य ठिहिर्याउँछ।
बिच्छीका डङ्कको ज्वाला तालुसम्म पुर्याउँछ।।
२६
जीवको जीवनाऽऽधार सूर्य, अग्नि, रुवा, उन।
नपाये चारमा यौटा बन्छ निर्जीव जीवन।।
२७
आकाश रुँदिंदै आयो केही मैलोपना धरी।
भित्री कुकर्मचिन्ताले सतायेको मनैसरी।।
२८
रुँदियेका दिनै सारा बिकम्बा छन् कठैबरी
दुर्भाग्य दोषले ज्यादा दबायेका गुणीसरी।।
२९
अँध्यारो रुँदले गर्दा अँध्यारामा बिते दिन।
उज्यालो मुक्तचेष्टा झैं नष्ट भो सूर्यदर्शन।।
३०
रुँदका रूपमा यद्वा शीतव्याकुल लोकको।
आकाशमा गिर्यो लामू पर्दा मलिन शोकको।।
३१
हिमको तकिया तानी ओढी त्यो रुँदसीरक।
आफैं शिशिर लेट्यो कि पन्छाई रविदीपक?।।
३२
हटदैन बिना बूँद मैलो रुँद कसै गरी।
आँशु केही नवर्षाई शोक जान्थ्यो कहाँ टरी।।
३३
दिक्कगर्छ सबैलाई माघको सिम्सिमे झरी।
ज्यादा कचकचे चाङ्ने घरखोते बुढोसरी।।