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फिका देखिन्छ अत्यन्त पद्मले शून्य पोखरी। | फिका देखिन्छ अत्यन्त पद्मले शून्य पोखरी। | ||
जूवामा धन फालेका जुवाडेको मुखैसरी।। | जूवामा धन फालेका जुवाडेको मुखैसरी।। | ||
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पद्मको रसका प्रेमी मदमत्त मधुव्रत।। | पद्मको रसका प्रेमी मदमत्त मधुव्रत।। | ||
घुम्न थाले अँगेरीका फूलमा दुःखकर्शित।। | घुम्न थाले अँगेरीका फूलमा दुःखकर्शित।। | ||
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कहाँ बेली, कहाँ चम्पा, कहाँ मन्दार, पाटल। | कहाँ बेली, कहाँ चम्पा, कहाँ मन्दार, पाटल। | ||
कालले गनियो खालि फूलैमा तुच्छ धुर्सुल।। | कालले गनियो खालि फूलैमा तुच्छ धुर्सुल।। | ||
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शीतले फूलका साना बगैंचाका बुटाहरू। | शीतले फूलका साना बगैंचाका बुटाहरू। | ||
परलोक भये धेरै, रुन्छन् थोरै धुरूधुरू।। | परलोक भये धेरै, रुन्छन् थोरै धुरूधुरू।। | ||
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रसधारा चुसी सारा तुषाराले वनस्थली। | रसधारा चुसी सारा तुषाराले वनस्थली। | ||
गरायो नीरसाऽऽकार छैन केही झिलीमिली।। | गरायो नीरसाऽऽकार छैन केही झिलीमिली।। | ||
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पुष्पपल्लवको शोभा नभयेको वनै सब। | पुष्पपल्लवको शोभा नभयेको वनै सब। | ||
बन्यो स्वाऽऽधीनतारत्न फालेको दास झैं अब।। | बन्यो स्वाऽऽधीनतारत्न फालेको दास झैं अब।। | ||
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गलेकी हिमवर्षाले, बलेकी तपले अति। | गलेकी हिमवर्षाले, बलेकी तपले अति। | ||
गौरी झैं कलिला साना प्याहुली छन् कताकति।। | गौरी झैं कलिला साना प्याहुली छन् कताकति।। | ||
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देखिन्छ वनमा यौटा फुलेको लोध हालमा। | देखिन्छ वनमा यौटा फुलेको लोध हालमा। | ||
सिद्धिसम्पत्तिले पूर्ण योगी झैं विश्वजालमा।। | सिद्धिसम्पत्तिले पूर्ण योगी झैं विश्वजालमा।। | ||
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लेकबाट झर्यो सारा विवेकी क्रौञ्चको गण। | लेकबाट झर्यो सारा विवेकी क्रौञ्चको गण। | ||
देशकालज्ञले लिन्थ्यो कूपमण्डूकता किन?।। | देशकालज्ञले लिन्थ्यो कूपमण्डूकता किन?।। | ||
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Revision as of 08:19, 10 April 2025
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८८
फिका देखिन्छ अत्यन्त पद्मले शून्य पोखरी।
जूवामा धन फालेका जुवाडेको मुखैसरी।।
८९
पद्मको रसका प्रेमी मदमत्त मधुव्रत।।
घुम्न थाले अँगेरीका फूलमा दुःखकर्शित।।
९०
कहाँ बेली, कहाँ चम्पा, कहाँ मन्दार, पाटल।
कालले गनियो खालि फूलैमा तुच्छ धुर्सुल।।
९१
शीतले फूलका साना बगैंचाका बुटाहरू।
परलोक भये धेरै, रुन्छन् थोरै धुरूधुरू।।
९२
रसधारा चुसी सारा तुषाराले वनस्थली।
गरायो नीरसाऽऽकार छैन केही झिलीमिली।।
९३
पुष्पपल्लवको शोभा नभयेको वनै सब।
बन्यो स्वाऽऽधीनतारत्न फालेको दास झैं अब।।
९४
गलेकी हिमवर्षाले, बलेकी तपले अति।
गौरी झैं कलिला साना प्याहुली छन् कताकति।।
९५
देखिन्छ वनमा यौटा फुलेको लोध हालमा।
सिद्धिसम्पत्तिले पूर्ण योगी झैं विश्वजालमा।।
९६
लेकबाट झर्यो सारा विवेकी क्रौञ्चको गण।
देशकालज्ञले लिन्थ्यो कूपमण्डूकता किन?।।