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परेछ शीतसम्बन्धी सूर्यलाई पनी पिर। | परेछ शीतसम्बन्धी सूर्यलाई पनी पिर। | ||
नत्र तेसरि सोझिन्थे किन अग्निभयेतिर?।। | नत्र तेसरि सोझिन्थे किन अग्निभयेतिर?।। | ||
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राम झैं रवि जानाले कोल्टामा मन्द भैकन। | राम झैं रवि जानाले कोल्टामा मन्द भैकन। | ||
जानकी पद्मिनी हर्न खडा भो हिमरावण।। | जानकी पद्मिनी हर्न खडा भो हिमरावण।। | ||
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विहोश भैढलीहाली पद्मिनी विकलाऽऽकृति। | विहोश भैढलीहाली पद्मिनी विकलाऽऽकृति। | ||
होशमा किन घुस्रन्थी अर्काका काखमा सती?।। | होशमा किन घुस्रन्थी अर्काका काखमा सती?।। | ||
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दुष्टले पद्मिनी कान्ता हर्नाले विरहाऽऽतुर। | दुष्टले पद्मिनी कान्ता हर्नाले विरहाऽऽतुर। | ||
दोस्रो रामसरी सूर्य बने मालिन्यमन्दिर।। | दोस्रो रामसरी सूर्य बने मालिन्यमन्दिर।। | ||
{{pcn|}} | {{pcn|७४}} | ||
समातेरं धनूराशि रामरूपदिवाकर। | समातेरं धनूराशि रामरूपदिवाकर। | ||
सीताऽऽपुर हुँदै ज्यादै जाँदैछन् की उँधोतिर?।। | सीताऽऽपुर हुँदै ज्यादै जाँदैछन् की उँधोतिर?।। | ||
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एतावता बढ्यो जाडो, थाल्यो त्यो हिम वर्षन। | एतावता बढ्यो जाडो, थाल्यो त्यो हिम वर्षन। | ||
बिलायो कमलश्रेणी, पुगे श्रीसूर्य दक्खिन।। | बिलायो कमलश्रेणी, पुगे श्रीसूर्य दक्खिन।। | ||
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दुःख दुर्भाग्यको धारो ठण्डीका उग्ररूपमा। | दुःख दुर्भाग्यको धारो ठण्डीका उग्ररूपमा। | ||
खनिँदो छ कठै राती लगातार गरीबमा।। | खनिँदो छ कठै राती लगातार गरीबमा।। | ||
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दुःखीका दुःखको याद भयेदेखी अलीकति। | दुःखीका दुःखको याद भयेदेखी अलीकति। | ||
दैवले सब उल्टन्थ्यो तत्कालै सृष्टिपद्धति।। | दैवले सब उल्टन्थ्यो तत्कालै सृष्टिपद्धति।। | ||
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दुःखी गरीबका लेखा नखदेखी शिखातक। | दुःखी गरीबका लेखा नखदेखी शिखातक। | ||
चर्चरी चिरने पापी हेमन्तै घोर नारक।। | चर्चरी चिरने पापी हेमन्तै घोर नारक।। | ||
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Revision as of 08:17, 10 April 2025
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७०
परेछ शीतसम्बन्धी सूर्यलाई पनी पिर।
नत्र तेसरि सोझिन्थे किन अग्निभयेतिर?।।
७१
राम झैं रवि जानाले कोल्टामा मन्द भैकन।
जानकी पद्मिनी हर्न खडा भो हिमरावण।।
७२
विहोश भैढलीहाली पद्मिनी विकलाऽऽकृति।
होशमा किन घुस्रन्थी अर्काका काखमा सती?।।
७३
दुष्टले पद्मिनी कान्ता हर्नाले विरहाऽऽतुर।
दोस्रो रामसरी सूर्य बने मालिन्यमन्दिर।।
७४
समातेरं धनूराशि रामरूपदिवाकर।
सीताऽऽपुर हुँदै ज्यादै जाँदैछन् की उँधोतिर?।।
७५
एतावता बढ्यो जाडो, थाल्यो त्यो हिम वर्षन।
बिलायो कमलश्रेणी, पुगे श्रीसूर्य दक्खिन।।
७६
दुःख दुर्भाग्यको धारो ठण्डीका उग्ररूपमा।
खनिँदो छ कठै राती लगातार गरीबमा।।
७७
दुःखीका दुःखको याद भयेदेखी अलीकति।
दैवले सब उल्टन्थ्यो तत्कालै सृष्टिपद्धति।।
७८
दुःखी गरीबका लेखा नखदेखी शिखातक।
चर्चरी चिरने पापी हेमन्तै घोर नारक।।