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हेर्दा तुषारो राम्रो छ, कुल्चँदा र समाउँदा। | हेर्दा तुषारो राम्रो छ, कुल्चँदा र समाउँदा। | ||
पारी कक्रक्क तत्कालै सातो हर्दछ सर्वदा।। | पारी कक्रक्क तत्कालै सातो हर्दछ सर्वदा।। | ||
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काठ्ठियेर सदा रुन्छन् सारा वृक्षलताहरू। | काठ्ठियेर सदा रुन्छन् सारा वृक्षलताहरू। | ||
शीतका रूपमा आँशु चुहायेर धुरूधुरू।। | शीतका रूपमा आँशु चुहायेर धुरूधुरू।। | ||
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लतावृक्ष तुषाराले सब पार्यो थिलोथिलो। | लतावृक्ष तुषाराले सब पार्यो थिलोथिलो। | ||
जिङ्रिङ्ङ वन देखिन्छ, शोभाशून्य उराठिलो।। | जिङ्रिङ्ङ वन देखिन्छ, शोभाशून्य उराठिलो।। | ||
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पक्षी कठै पखेटाको तुषारो टक्टक्याउन। | पक्षी कठै पखेटाको तुषारो टक्टक्याउन। | ||
चाहन्छन् काठ्ठियेका छन्, सक्तैनन् फट्फटाउन।। | चाहन्छन् काठ्ठियेका छन्, सक्तैनन् फट्फटाउन।। | ||
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न चराको कतै रङ्ग, न कतै पुष्पपल्लव। | न चराको कतै रङ्ग, न कतै पुष्पपल्लव। | ||
तुषारामा डुब्यो सारा वनको महिमा सब।। | तुषारामा डुब्यो सारा वनको महिमा सब।। | ||
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हरायो शीतको मारे वृक्षको बढने गति। | हरायो शीतको मारे वृक्षको बढने गति। | ||
अँठ्यायेपछि अर्काले कसको हुन्छ उन्नति?।। | अँठ्यायेपछि अर्काले कसको हुन्छ उन्नति?।। | ||
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देखिये तुहिनाऽऽक्रान्त लता, वृक्ष, वनस्पति। | देखिये तुहिनाऽऽक्रान्त लता, वृक्ष, वनस्पति। | ||
आलस्यले अँठ्यायेका जातिजस्तै हतद्युति।। | आलस्यले अँठ्यायेका जातिजस्तै हतद्युति।। | ||
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जराले जीवको दिव्य यौवनज्योति झैं सब। | जराले जीवको दिव्य यौवनज्योति झैं सब। | ||
दबायो शीतधाराले शरत्को पुष्पगौरव।। | दबायो शीतधाराले शरत्को पुष्पगौरव।। | ||
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घुम्टो हालेर हुस्सूको शीतधारा चुहाउँदै। | घुम्टो हालेर हुस्सूको शीतधारा चुहाउँदै। | ||
बिहानमा अँध्यारी भै रुन्छिन् प्रकृति नै सधैं।। | बिहानमा अँध्यारी भै रुन्छिन् प्रकृति नै सधैं।। | ||
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Revision as of 08:14, 10 April 2025
४३
हेर्दा तुषारो राम्रो छ, कुल्चँदा र समाउँदा।
पारी कक्रक्क तत्कालै सातो हर्दछ सर्वदा।।
४४
काठ्ठियेर सदा रुन्छन् सारा वृक्षलताहरू।
शीतका रूपमा आँशु चुहायेर धुरूधुरू।।
४५
लतावृक्ष तुषाराले सब पार्यो थिलोथिलो।
जिङ्रिङ्ङ वन देखिन्छ, शोभाशून्य उराठिलो।।
४६
पक्षी कठै पखेटाको तुषारो टक्टक्याउन।
चाहन्छन् काठ्ठियेका छन्, सक्तैनन् फट्फटाउन।।
४७
न चराको कतै रङ्ग, न कतै पुष्पपल्लव।
तुषारामा डुब्यो सारा वनको महिमा सब।।
४८
हरायो शीतको मारे वृक्षको बढने गति।
अँठ्यायेपछि अर्काले कसको हुन्छ उन्नति?।।
४९
देखिये तुहिनाऽऽक्रान्त लता, वृक्ष, वनस्पति।
आलस्यले अँठ्यायेका जातिजस्तै हतद्युति।।
५०
जराले जीवको दिव्य यौवनज्योति झैं सब।
दबायो शीतधाराले शरत्को पुष्पगौरव।।
५१
घुम्टो हालेर हुस्सूको शीतधारा चुहाउँदै।
बिहानमा अँध्यारी भै रुन्छिन् प्रकृति नै सधैं।।