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हुटिट्याउँ, हिलेकौवा, जलेवा, बक, चाँचर। | हुटिट्याउँ, हिलेकौवा, जलेवा, बक, चाँचर। | ||
खेतीका कुह्रुवातुल्य खेतैमा गर्दछन् घर।। | खेतीका कुह्रुवातुल्य खेतैमा गर्दछन् घर।। | ||
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साना रुगरुगायेर दौडने दिव्य खञ्जन। | साना रुगरुगायेर दौडने दिव्य खञ्जन। | ||
गतिसौन्दर्यले साह्रै गर्दछन् मनरञ्जन।। | गतिसौन्दर्यले साह्रै गर्दछन् मनरञ्जन।। | ||
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त्यो छिटो, छरितो, राम्रो तिनको फुर्फुराहट। | त्यो छिटो, छरितो, राम्रो तिनको फुर्फुराहट। | ||
हेर्दा भित्र छचल्किन्छ प्रेमपीयूषको घट।। | हेर्दा भित्र छचल्किन्छ प्रेमपीयूषको घट।। | ||
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जता हेर्यो उतै राम्रो आनन्दी रङ्ग लोकको। | जता हेर्यो उतै राम्रो आनन्दी रङ्ग लोकको। | ||
छैन संसारमा नामनिशाना दुःख शोकको।। | छैन संसारमा नामनिशाना दुःख शोकको।। | ||
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खोली कमलको छाता हम्काई काशचामर। | खोली कमलको छाता हम्काई काशचामर। | ||
ऋतुराजैसरी गम्क्यो शरत्काल मनोहर।। | ऋतुराजैसरी गम्क्यो शरत्काल मनोहर।। | ||
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फूलका मदको गन्ध भरियेको छतीवन। | फूलका मदको गन्ध भरियेको छतीवन। | ||
शरत्को वनमा बद्ध हात्तीतुल्य छ शोभन।। | शरत्को वनमा बद्ध हात्तीतुल्य छ शोभन।। | ||
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वनमा फलपुष्पादि विशेष नभये पनि। | वनमा फलपुष्पादि विशेष नभये पनि। | ||
झ्याङ्गिएको छ त्यो ज्यादा बनी गाम्भीर्यको धनी।। | झ्याङ्गिएको छ त्यो ज्यादा बनी गाम्भीर्यको धनी।। | ||
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वसन्तकै सरी सारा बगैंचाको बहार छ। | वसन्तकै सरी सारा बगैंचाको बहार छ। | ||
हावा वसन्तको भन्दा ज्यादा महकदार छ।। | हावा वसन्तको भन्दा ज्यादा महकदार छ।। | ||
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फुलेको हसनारूप शरत्को मन्द हास छ। | फुलेको हसनारूप शरत्को मन्द हास छ। | ||
जसमा बहुतै चर्को वासनाको विकास छ।। | जसमा बहुतै चर्को वासनाको विकास छ।। | ||
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Revision as of 08:07, 10 April 2025
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७०
हुटिट्याउँ, हिलेकौवा, जलेवा, बक, चाँचर।
खेतीका कुह्रुवातुल्य खेतैमा गर्दछन् घर।।
७१
साना रुगरुगायेर दौडने दिव्य खञ्जन।
गतिसौन्दर्यले साह्रै गर्दछन् मनरञ्जन।।
७२
त्यो छिटो, छरितो, राम्रो तिनको फुर्फुराहट।
हेर्दा भित्र छचल्किन्छ प्रेमपीयूषको घट।।
७३
जता हेर्यो उतै राम्रो आनन्दी रङ्ग लोकको।
छैन संसारमा नामनिशाना दुःख शोकको।।
७४
खोली कमलको छाता हम्काई काशचामर।
ऋतुराजैसरी गम्क्यो शरत्काल मनोहर।।
७५
फूलका मदको गन्ध भरियेको छतीवन।
शरत्को वनमा बद्ध हात्तीतुल्य छ शोभन।।
७६
वनमा फलपुष्पादि विशेष नभये पनि।
झ्याङ्गिएको छ त्यो ज्यादा बनी गाम्भीर्यको धनी।।
७७
वसन्तकै सरी सारा बगैंचाको बहार छ।
हावा वसन्तको भन्दा ज्यादा महकदार छ।।
७८
फुलेको हसनारूप शरत्को मन्द हास छ।
जसमा बहुतै चर्को वासनाको विकास छ।।