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मेघमाला मिले एकैछत्त भै गगनैभरी। | मेघमाला मिले एकैछत्त भै गगनैभरी। | ||
उर्लंदै सिन्धुमा चारैतर्फबाट नदीसरी।। | उर्लंदै सिन्धुमा चारैतर्फबाट नदीसरी।। | ||
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नाट्यशाला छ आकाश, नाचले बिजुली नटी। | नाट्यशाला छ आकाश, नाचले बिजुली नटी। | ||
ताल दिन्छ तबल्ची झैं मेघ धाकिटि धाकिटी। | ताल दिन्छ तबल्ची झैं मेघ धाकिटि धाकिटी। | ||
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घरीघरी त्यो देखिन्छे मेघमा बिजुली परी। | घरीघरी त्यो देखिन्छे मेघमा बिजुली परी। | ||
कृष्णका काखमा मानू लेटेकी राधिकासरी।। | कृष्णका काखमा मानू लेटेकी राधिकासरी।। | ||
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राम्रा नयाँ नयाँ रङ्ग निकालेर थरीथरी। | राम्रा नयाँ नयाँ रङ्ग निकालेर थरीथरी। | ||
सङ्घ चक्कर खाँदै छ कविको प्रतिभासरी।। | सङ्घ चक्कर खाँदै छ कविको प्रतिभासरी।। | ||
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जति हेर्यो उती राम्रो रङ्ग आकाशमा चढ्यो। | जति हेर्यो उती राम्रो रङ्ग आकाशमा चढ्यो। | ||
मेघले बिजुलीरूप झण्डा विजयको गड्यो।। | मेघले बिजुलीरूप झण्डा विजयको गड्यो।। | ||
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घनक्क पारी घन्काई गम्भीर जयडिण्डिम। | घनक्क पारी घन्काई गम्भीर जयडिण्डिम। | ||
गर्न लाग्यो महामेघ जलको वृष्टि झम्झम।। | गर्न लाग्यो महामेघ जलको वृष्टि झम्झम।। | ||
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पहिला जलका बिन्दु जोरले जुन आउँछन्। | पहिला जलका बिन्दु जोरले जुन आउँछन्। | ||
रूपमा पुतलीतुल्य धूपमा ती बिलाउँछन्।। | रूपमा पुतलीतुल्य धूपमा ती बिलाउँछन्।। | ||
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पहिले पृथिवीमाथि वर्षंदा जल दर्दरी। | पहिले पृथिवीमाथि वर्षंदा जल दर्दरी। | ||
सुगन्धी बाफ निस्कन्छ आनन्दोच्छ्वास झैं गरी।। | सुगन्धी बाफ निस्कन्छ आनन्दोच्छ्वास झैं गरी।। | ||
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साना सीकरले सारा अङ्ग सर्र रसाउँछ। | साना सीकरले सारा अङ्ग सर्र रसाउँछ। | ||
स्वर्गीय सुखवर्षाको मनमा हर्ष आउँछ।। | स्वर्गीय सुखवर्षाको मनमा हर्ष आउँछ।। | ||
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Revision as of 07:49, 10 April 2025
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१६
मेघमाला मिले एकैछत्त भै गगनैभरी।
उर्लंदै सिन्धुमा चारैतर्फबाट नदीसरी।।
१७
नाट्यशाला छ आकाश, नाचले बिजुली नटी।
ताल दिन्छ तबल्ची झैं मेघ धाकिटि धाकिटी।
१८
घरीघरी त्यो देखिन्छे मेघमा बिजुली परी।
कृष्णका काखमा मानू लेटेकी राधिकासरी।।
१९
राम्रा नयाँ नयाँ रङ्ग निकालेर थरीथरी।
सङ्घ चक्कर खाँदै छ कविको प्रतिभासरी।।
२०
जति हेर्यो उती राम्रो रङ्ग आकाशमा चढ्यो।
मेघले बिजुलीरूप झण्डा विजयको गड्यो।।
२१
घनक्क पारी घन्काई गम्भीर जयडिण्डिम।
गर्न लाग्यो महामेघ जलको वृष्टि झम्झम।।
२२
पहिला जलका बिन्दु जोरले जुन आउँछन्।
रूपमा पुतलीतुल्य धूपमा ती बिलाउँछन्।।
२३
पहिले पृथिवीमाथि वर्षंदा जल दर्दरी।
सुगन्धी बाफ निस्कन्छ आनन्दोच्छ्वास झैं गरी।।
२४
साना सीकरले सारा अङ्ग सर्र रसाउँछ।
स्वर्गीय सुखवर्षाको मनमा हर्ष आउँछ।।