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अस्ताऽद्रिका चुलीबाट घर्क्यो घाम अली जब। | अस्ताऽद्रिका चुलीबाट घर्क्यो घाम अली जब। | ||
जलवासी अनी हाँसी निस्कन्छन् तीरमा सब।। | जलवासी अनी हाँसी निस्कन्छन् तीरमा सब।। | ||
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ग्रीष्ममा सूर्यको छैन चन्द्रको झैं प्रशंसन। | ग्रीष्ममा सूर्यको छैन चन्द्रको झैं प्रशंसन। | ||
भला हुन्थ्यो सदाकाल कहाँ ज्यादा गरम्पन?।। | भला हुन्थ्यो सदाकाल कहाँ ज्यादा गरम्पन?।। | ||
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दिन रात दुवैको छ चौथो याम मनोहर। | दिन रात दुवैको छ चौथो याम मनोहर। | ||
चतुर्थाऽऽश्रम झैं आर्यजातिको शान्तिमन्दिर।। | चतुर्थाऽऽश्रम झैं आर्यजातिको शान्तिमन्दिर।। | ||
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दिनमा जीवनाऽऽशाको लहरा जो हराउँछ। | दिनमा जीवनाऽऽशाको लहरा जो हराउँछ। | ||
चन्द्रिकाऽऽमृत पायेर रातमा त्यो पह्लाउँछ।। | चन्द्रिकाऽऽमृत पायेर रातमा त्यो पह्लाउँछ।। | ||
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उदयाऽचलमा चारु निस्कँदा चन्द्रमण्डल। | उदयाऽचलमा चारु निस्कँदा चन्द्रमण्डल। | ||
ढकमक्क भई फुल्छ मनःकुमुद निर्मल।। | ढकमक्क भई फुल्छ मनःकुमुद निर्मल।। | ||
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चन्द्रको चाँदनी स्वच्छ लिनलाई थरीथरी। | चन्द्रको चाँदनी स्वच्छ लिनलाई थरीथरी। | ||
अटालीमा चढी बस्छन् रातमा च्याखुरासरी।। | अटालीमा चढी बस्छन् रातमा च्याखुरासरी।। | ||
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प्रचण्ड घामले गर्दा शुष्कप्राय चराचर। | प्रचण्ड घामले गर्दा शुष्कप्राय चराचर। | ||
रसाई चन्द्रले पारे सार्थ नाम सुधाकर।। | रसाई चन्द्रले पारे सार्थ नाम सुधाकर।। | ||
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कर्पूरद्रव झैं चीसो चन्द्रको दिव्य चाँदनी। | कर्पूरद्रव झैं चीसो चन्द्रको दिव्य चाँदनी। | ||
पर्दा सर्र रसायेर अङ्कुराउँछ जीवनी।। | पर्दा सर्र रसायेर अङ्कुराउँछ जीवनी।। | ||
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बिहानीपखको राती मिल्छ जो शीतलोपन। | बिहानीपखको राती मिल्छ जो शीतलोपन। | ||
विश्वको त्यो उझिन्नामा झुण्डियेको छ जीवन।। | विश्वको त्यो उझिन्नामा झुण्डियेको छ जीवन।। | ||
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Revision as of 07:47, 10 April 2025
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८९
अस्ताऽद्रिका चुलीबाट घर्क्यो घाम अली जब।
जलवासी अनी हाँसी निस्कन्छन् तीरमा सब।।
९०
ग्रीष्ममा सूर्यको छैन चन्द्रको झैं प्रशंसन।
भला हुन्थ्यो सदाकाल कहाँ ज्यादा गरम्पन?।।
९१
दिन रात दुवैको छ चौथो याम मनोहर।
चतुर्थाऽऽश्रम झैं आर्यजातिको शान्तिमन्दिर।।
९२
दिनमा जीवनाऽऽशाको लहरा जो हराउँछ।
चन्द्रिकाऽऽमृत पायेर रातमा त्यो पह्लाउँछ।।
९३
उदयाऽचलमा चारु निस्कँदा चन्द्रमण्डल।
ढकमक्क भई फुल्छ मनःकुमुद निर्मल।।
९४
चन्द्रको चाँदनी स्वच्छ लिनलाई थरीथरी।
अटालीमा चढी बस्छन् रातमा च्याखुरासरी।।
९५
प्रचण्ड घामले गर्दा शुष्कप्राय चराचर।
रसाई चन्द्रले पारे सार्थ नाम सुधाकर।।
९६
कर्पूरद्रव झैं चीसो चन्द्रको दिव्य चाँदनी।
पर्दा सर्र रसायेर अङ्कुराउँछ जीवनी।।
९७
बिहानीपखको राती मिल्छ जो शीतलोपन।
विश्वको त्यो उझिन्नामा झुण्डियेको छ जीवन।।