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डढेलाले निल्यो झट्टै झार, पात दुवैथरी। | डढेलाले निल्यो झट्टै झार, पात दुवैथरी। | ||
कर्मसञ्चित, आगामी विज्ञानज्योतिषैसरी।। | कर्मसञ्चित, आगामी विज्ञानज्योतिषैसरी।। | ||
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ठूला फेदविषे आगो सल्केका वृक्ष हुन् जुन। | ठूला फेदविषे आगो सल्केका वृक्ष हुन् जुन। | ||
उनी प्रारब्ध झैं थाले सुस्तसुस्तै बिलाउन।। | उनी प्रारब्ध झैं थाले सुस्तसुस्तै बिलाउन।। | ||
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तातो लपलपायेको रातो जिभ्रो झिकीकन। | तातो लपलपायेको रातो जिभ्रो झिकीकन। | ||
कराल काल लाग्यो कि लपक्कै लोक चाटन?।। | कराल काल लाग्यो कि लपक्कै लोक चाटन?।। | ||
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स्याँस्याँ गरी निकालेका जिभ्रो जस्ता बडा तिखा। | स्याँस्याँ गरी निकालेका जिभ्रो जस्ता बडा तिखा। | ||
देखिन्छन् टोडकाबाट वृक्षमा अग्निका शिखा।। | देखिन्छन् टोडकाबाट वृक्षमा अग्निका शिखा।। | ||
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रुन्छन् कठै कुनै वृक्ष ठाडै चीँ चीँ गरी गरी। | रुन्छन् कठै कुनै वृक्ष ठाडै चीँ चीँ गरी गरी। | ||
रसरूप सफा आँशु चुहाईकन बर्बरी।। | रसरूप सफा आँशु चुहाईकन बर्बरी।। | ||
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घरी झार, घरी पात, घरी वृक्ष, घरी लता। | घरी झार, घरी पात, घरी वृक्ष, घरी लता। | ||
भस्म पारी डढेलाले उडायो वनको पता।। | भस्म पारी डढेलाले उडायो वनको पता।। | ||
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आगाका डाहले माथि उठेका बिचरी चरी। | आगाका डाहले माथि उठेका बिचरी चरी। | ||
डढेलामा गिरे फेरि घामका तापले गरी।। | डढेलामा गिरे फेरि घामका तापले गरी।। | ||
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राती पाखापखेरामा देखिन्छ देवमाधुरी। | राती पाखापखेरामा देखिन्छ देवमाधुरी। | ||
कृष्णका कटिको लामू दिव्य पीताम्बरैसरी।। | कृष्णका कटिको लामू दिव्य पीताम्बरैसरी।। | ||
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प्रत्यक्ष सर्वसंहारी महामारीसमान यो। | प्रत्यक्ष सर्वसंहारी महामारीसमान यो। | ||
आगाले जङ्गली जीव नामशेष गरीदियो।। | आगाले जङ्गली जीव नामशेष गरीदियो।। | ||
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Revision as of 07:44, 10 April 2025
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७१
डढेलाले निल्यो झट्टै झार, पात दुवैथरी।
कर्मसञ्चित, आगामी विज्ञानज्योतिषैसरी।।
७२
ठूला फेदविषे आगो सल्केका वृक्ष हुन् जुन।
उनी प्रारब्ध झैं थाले सुस्तसुस्तै बिलाउन।।
७३
तातो लपलपायेको रातो जिभ्रो झिकीकन।
कराल काल लाग्यो कि लपक्कै लोक चाटन?।।
७४
स्याँस्याँ गरी निकालेका जिभ्रो जस्ता बडा तिखा।
देखिन्छन् टोडकाबाट वृक्षमा अग्निका शिखा।।
७५
रुन्छन् कठै कुनै वृक्ष ठाडै चीँ चीँ गरी गरी।
रसरूप सफा आँशु चुहाईकन बर्बरी।।
७६
घरी झार, घरी पात, घरी वृक्ष, घरी लता।
भस्म पारी डढेलाले उडायो वनको पता।।
७७
आगाका डाहले माथि उठेका बिचरी चरी।
डढेलामा गिरे फेरि घामका तापले गरी।।
७८
राती पाखापखेरामा देखिन्छ देवमाधुरी।
कृष्णका कटिको लामू दिव्य पीताम्बरैसरी।।
७९
प्रत्यक्ष सर्वसंहारी महामारीसमान यो।
आगाले जङ्गली जीव नामशेष गरीदियो।।