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अँध्यारा अत्मरा, खोल्सा, गुफा, डण्डूर यी सब। | अँध्यारा अत्मरा, खोल्सा, गुफा, डण्डूर यी सब। | ||
तापाऽऽर्त पशुपक्षीका विश्रामस्थान छन् अब।। | तापाऽऽर्त पशुपक्षीका विश्रामस्थान छन् अब।। | ||
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असह्य तापका मारे हिजो आज सबै जन। | असह्य तापका मारे हिजो आज सबै जन। | ||
नैष्कर्म्यसिद्ध योगी झैं घुम्न थाले वनैवन।। | नैष्कर्म्यसिद्ध योगी झैं घुम्न थाले वनैवन।। | ||
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हिम, चन्दन, कस्तूरी, मुक्ताहार, मृणालमा। | हिम, चन्दन, कस्तूरी, मुक्ताहार, मृणालमा। | ||
व्यग्र देखिन्छ अत्यन्त विलासीवृन्द हालमा।। | व्यग्र देखिन्छ अत्यन्त विलासीवृन्द हालमा।। | ||
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खेतमा खेतिवालाका रमणीजन हालमा। | खेतमा खेतिवालाका रमणीजन हालमा। | ||
पैह्रन्छन् पसिनारूप मुक्ताऽऽभूषण भालमा।। | पैह्रन्छन् पसिनारूप मुक्ताऽऽभूषण भालमा।। | ||
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निःशङ्क पिउँछन् पानी सिंहका साथमा मृग। | निःशङ्क पिउँछन् पानी सिंहका साथमा मृग। | ||
एकदेशीयका हुन्छ दुःखैमा ऐक्य सम्भव।। | एकदेशीयका हुन्छ दुःखैमा ऐक्य सम्भव।। | ||
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पहिले वन गर्मीले उसिनेको समान छ। | पहिले वन गर्मीले उसिनेको समान छ। | ||
डढेलो उसमा फेरि दुःखको के बयान छ?।। | डढेलो उसमा फेरि दुःखको के बयान छ?।। | ||
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निकाली अग्निको ज्वाला आपसैमा भिडीकन। | निकाली अग्निको ज्वाला आपसैमा भिडीकन। | ||
कुरुवंशीसरी थाल्यो वंशश्रेणी विनाशिन।। | कुरुवंशीसरी थाल्यो वंशश्रेणी विनाशिन।। | ||
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वेगसाथ बढेको छ डढेलो वनमा अति। | वेगसाथ बढेको छ डढेलो वनमा अति। | ||
हिन्दूमा सर्वसंहारी फूट झैं भीषणाऽऽकृति।। | हिन्दूमा सर्वसंहारी फूट झैं भीषणाऽऽकृति।। | ||
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उताबाट उता सल्क्यो उताबाट उतातिर। | उताबाट उता सल्क्यो उताबाट उतातिर। | ||
गर्दै चटचटाऽऽकार छोपिहाल्यो सबैतिर।। | गर्दै चटचटाऽऽकार छोपिहाल्यो सबैतिर।। | ||
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Revision as of 07:43, 10 April 2025
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६२
अँध्यारा अत्मरा, खोल्सा, गुफा, डण्डूर यी सब।
तापाऽऽर्त पशुपक्षीका विश्रामस्थान छन् अब।।
६३
असह्य तापका मारे हिजो आज सबै जन।
नैष्कर्म्यसिद्ध योगी झैं घुम्न थाले वनैवन।।
६४
हिम, चन्दन, कस्तूरी, मुक्ताहार, मृणालमा।
व्यग्र देखिन्छ अत्यन्त विलासीवृन्द हालमा।।
६५
खेतमा खेतिवालाका रमणीजन हालमा।
पैह्रन्छन् पसिनारूप मुक्ताऽऽभूषण भालमा।।
६६
निःशङ्क पिउँछन् पानी सिंहका साथमा मृग।
एकदेशीयका हुन्छ दुःखैमा ऐक्य सम्भव।।
६७
पहिले वन गर्मीले उसिनेको समान छ।
डढेलो उसमा फेरि दुःखको के बयान छ?।।
६८
निकाली अग्निको ज्वाला आपसैमा भिडीकन।
कुरुवंशीसरी थाल्यो वंशश्रेणी विनाशिन।।
६९
वेगसाथ बढेको छ डढेलो वनमा अति।
हिन्दूमा सर्वसंहारी फूट झैं भीषणाऽऽकृति।।
७०
उताबाट उता सल्क्यो उताबाट उतातिर।
गर्दै चटचटाऽऽकार छोपिहाल्यो सबैतिर।।