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पर्दा वसन्तको दिव्य प्रभाव पृथिवी सब। | पर्दा वसन्तको दिव्य प्रभाव पृथिवी सब। | ||
विवेक ज्योतिले शुद्ध विद्यातुल्य बनिन् अब।। | विवेक ज्योतिले शुद्ध विद्यातुल्य बनिन् अब।। | ||
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हजारौंमुख भै निस्के लतावृक्षाऽऽदि हालमा। | हजारौंमुख भै निस्के लतावृक्षाऽऽदि हालमा। | ||
लयाऽवस्था बितायेका जीव झैं सृष्टिकालमा।। | लयाऽवस्था बितायेका जीव झैं सृष्टिकालमा।। | ||
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आँकुरा, पिपिरा, साना, काइना, चिउला, टुसा। | आँकुरा, पिपिरा, साना, काइना, चिउला, टुसा। | ||
निस्के झपक्क सर्वत्र साह्रै कलकलाउँदा।। | निस्के झपक्क सर्वत्र साह्रै कलकलाउँदा।। | ||
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समाते सूर्यले फेरि उत्तराऽऽकाशको गति। | समाते सूर्यले फेरि उत्तराऽऽकाशको गति। | ||
प्रतापीको सदाकाल किन हुन्थ्यो अधोगति?।। | प्रतापीको सदाकाल किन हुन्थ्यो अधोगति?।। | ||
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दिनमा दीर्घता आयो रातले लघुता लियो। | दिनमा दीर्घता आयो रातले लघुता लियो। | ||
ऋतुराजत्वको सच्चा योग्यता स्पष्ट देखियो।। | ऋतुराजत्वको सच्चा योग्यता स्पष्ट देखियो।। | ||
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दीपका बीचमा मैला धूवाँ झैं गुप्त भैकन। | दीपका बीचमा मैला धूवाँ झैं गुप्त भैकन। | ||
अलिअलि चढेको छ दिनमा धमिलोपन।। | अलिअलि चढेको छ दिनमा धमिलोपन।। | ||
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जुन जीवनको भाग रातको दिनमा सर्यो। | जुन जीवनको भाग रातको दिनमा सर्यो। | ||
उसैले दिनको कान्ति पक्का केही फिका गर्यो।। | उसैले दिनको कान्ति पक्का केही फिका गर्यो।। | ||
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ऋतुनायकले घाम मन्दै गर्ने लिई सुर। | ऋतुनायकले घाम मन्दै गर्ने लिई सुर। | ||
तुवाँलोको मिही पर्दा लगायो कि सबैतिर।। | तुवाँलोको मिही पर्दा लगायो कि सबैतिर।। | ||
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अलिअलि तुवाँलोले छोपियेका दिगङ्गना। | अलिअलि तुवाँलोले छोपियेका दिगङ्गना। | ||
देखिन्छन् प्रमदातुल्य लज्जाले विनताऽऽनन।। | देखिन्छन् प्रमदातुल्य लज्जाले विनताऽऽनन।। | ||
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Revision as of 07:19, 10 April 2025
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१६
पर्दा वसन्तको दिव्य प्रभाव पृथिवी सब।
विवेक ज्योतिले शुद्ध विद्यातुल्य बनिन् अब।।
१७
हजारौंमुख भै निस्के लतावृक्षाऽऽदि हालमा।
लयाऽवस्था बितायेका जीव झैं सृष्टिकालमा।।
१८
आँकुरा, पिपिरा, साना, काइना, चिउला, टुसा।
निस्के झपक्क सर्वत्र साह्रै कलकलाउँदा।।
१९
समाते सूर्यले फेरि उत्तराऽऽकाशको गति।
प्रतापीको सदाकाल किन हुन्थ्यो अधोगति?।।
२०
दिनमा दीर्घता आयो रातले लघुता लियो।
ऋतुराजत्वको सच्चा योग्यता स्पष्ट देखियो।।
२१
दीपका बीचमा मैला धूवाँ झैं गुप्त भैकन।
अलिअलि चढेको छ दिनमा धमिलोपन।।
२२
जुन जीवनको भाग रातको दिनमा सर्यो।
उसैले दिनको कान्ति पक्का केही फिका गर्यो।।
२३
ऋतुनायकले घाम मन्दै गर्ने लिई सुर।
तुवाँलोको मिही पर्दा लगायो कि सबैतिर।।
२४
अलिअलि तुवाँलोले छोपियेका दिगङ्गना।
देखिन्छन् प्रमदातुल्य लज्जाले विनताऽऽनन।।