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तृतीय विश्राम
१
म पनी मुनि-वाक्य-माधुरी-
मुहुनीको वश बेसरी परी।
चुपचाप थियें शनै: शनै:
फिर निस्के मुनिका कुरा उनै।।
२
बित्यो वर्षा, प्यारो जलन जलधारा छरिछरी
हरी ग्रीष्मज्वाला, सकल पृथिवी शीतल गरी।
पखेरामा लागी तुहिनगिरिको शङ्कर सरी
बस्यो यद्वा लेट्यो सुखमय हँसीलोपन धरी।।
३
कुवा, खोलानाला, सर, दह तथा ताल, तटिनी
सबै सङ्ले झल्के, अति विमल ऐनामय बनी।
जहाँ हेर्दा नीलो गगनतल चुर्लुम्म सकल
डुबेको देखिन्थ्यो मुनिमन सरी स्वच्छ विमल।।