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हिमालमा गयो जाडो लोक साऽऽनन्द देखियो। | हिमालमा गयो जाडो लोक साऽऽनन्द देखियो। | ||
उदायो रसिलो राम्रो ऋतुराज वसन्त यो।। | उदायो रसिलो राम्रो ऋतुराज वसन्त यो।। | ||
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नामशेष भयो सारा पुरानू शिशिरस्थिति। | नामशेष भयो सारा पुरानू शिशिरस्थिति। | ||
लियो वसन्तले अर्कै नयाँ गौरवपद्धति।। | लियो वसन्तले अर्कै नयाँ गौरवपद्धति।। | ||
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ऋतु हुन् अरु पाँचोटा, वसन्त ऋतुराज हो। | ऋतु हुन् अरु पाँचोटा, वसन्त ऋतुराज हो। | ||
लोक गौरवले भर्नु यसैको मुख्य काज हो।। | लोक गौरवले भर्नु यसैको मुख्य काज हो।। | ||
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वसन्तमा समानै छन् ठण्डी गर्मी दुवै गुण। | वसन्तमा समानै छन् ठण्डी गर्मी दुवै गुण। | ||
तुल्य तुल्य दया दण्ड राजाका हुन् विभूषण।। | तुल्य तुल्य दया दण्ड राजाका हुन् विभूषण।। | ||
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देखिन्छ नाऽतिशीतोष्ण महिमा ऋतुराजको। | देखिन्छ नाऽतिशीतोष्ण महिमा ऋतुराजको। | ||
दयादण्डज्ञ राजाको नीति झैँ राजकाजको।। | दयादण्डज्ञ राजाको नीति झैँ राजकाजको।। | ||
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पशुपक्षी लतावृक्षलगायत चराचर। | पशुपक्षी लतावृक्षलगायत चराचर। | ||
ऋतुनायकको गर्छ प्रेमले स्वाऽऽगताऽऽदर।। | ऋतुनायकको गर्छ प्रेमले स्वाऽऽगताऽऽदर।। | ||
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Revision as of 15:28, 9 April 2025
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श्री
श्रीगौरी-शङ्कराभ्यान्नम:
अथ
वसन्त-विचार
१
हिमालमा गयो जाडो लोक साऽऽनन्द देखियो।
उदायो रसिलो राम्रो ऋतुराज वसन्त यो।।
२
नामशेष भयो सारा पुरानू शिशिरस्थिति।
लियो वसन्तले अर्कै नयाँ गौरवपद्धति।।
३
ऋतु हुन् अरु पाँचोटा, वसन्त ऋतुराज हो।
लोक गौरवले भर्नु यसैको मुख्य काज हो।।
४
वसन्तमा समानै छन् ठण्डी गर्मी दुवै गुण।
तुल्य तुल्य दया दण्ड राजाका हुन् विभूषण।।
५
देखिन्छ नाऽतिशीतोष्ण महिमा ऋतुराजको।
दयादण्डज्ञ राजाको नीति झैँ राजकाजको।।
६
पशुपक्षी लतावृक्षलगायत चराचर।
ऋतुनायकको गर्छ प्रेमले स्वाऽऽगताऽऽदर।।