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पालुवा फूल झैं राम्रा हलुका कपडाकन। | पालुवा फूल झैं राम्रा हलुका कपडाकन। | ||
पहिरी दुनियाँ लाग्यो वसन्तैको सखा हुन।। | पहिरी दुनियाँ लाग्यो वसन्तैको सखा हुन।। | ||
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कसैको अब जाँदैन भद्दा कन्थाविषे मन। | कसैको अब जाँदैन भद्दा कन्थाविषे मन। | ||
कालाऽनुगारी सारज्ञ कवि झैं छन् सबै जन।। | कालाऽनुगारी सारज्ञ कवि झैं छन् सबै जन।। | ||
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दबाई जेबमा चम्पा लागे रसिक घूमन। | दबाई जेबमा चम्पा लागे रसिक घूमन। | ||
सुगन्धका कुनै साक्षात् मूर्ति जस्ता बनीकन।। | सुगन्धका कुनै साक्षात् मूर्ति जस्ता बनीकन।। | ||
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वियोगी पान्थका आगे रसिलो ऋतुनायक। | वियोगी पान्थका आगे रसिलो ऋतुनायक। | ||
भयो भारतका लेखा कलि झैं दुःखदायक।। | भयो भारतका लेखा कलि झैं दुःखदायक।। | ||
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कर्याङ्कुरुङको पङ्क्ति एकतामा जमीकन। | कर्याङ्कुरुङको पङ्क्ति एकतामा जमीकन। | ||
सभ्य संसार झैं थाल्यो उत्तरोत्तर लम्कन।। | सभ्य संसार झैं थाल्यो उत्तरोत्तर लम्कन।। | ||
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त्यो मानू मधुलक्ष्मीका माथको भृङ्गगुञ्जित। | त्यो मानू मधुलक्ष्मीका माथको भृङ्गगुञ्जित। | ||
नीलपङ्कजमाला झैं देखिन्छ क्षणलम्बित।। | नीलपङ्कजमाला झैं देखिन्छ क्षणलम्बित।। | ||
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बेसी हिउँदमा झर्छ वर्षामा लेख पस्तछ। | बेसी हिउँदमा झर्छ वर्षामा लेख पस्तछ। | ||
पहाडिया गृहस्थी झैं क्रौञ्चको श्रेणि बस्तछ।। | पहाडिया गृहस्थी झैं क्रौञ्चको श्रेणि बस्तछ।। | ||
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गाम, बेसी गरी लम्बा बिचरा ती चरा सब। | गाम, बेसी गरी लम्बा बिचरा ती चरा सब। | ||
जीवनक्रमको शिक्षा स्पष्ट दिन्छन् सगौरव।। | जीवनक्रमको शिक्षा स्पष्ट दिन्छन् सगौरव।। | ||
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तडागमा खडा फेरि भयो कमलको वन। | तडागमा खडा फेरि भयो कमलको वन। | ||
भित्री बीज छँदासम्म मासिन्थ्यो र कुरा कुन?।। | भित्री बीज छँदासम्म मासिन्थ्यो र कुरा कुन?।। | ||
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Revision as of 15:27, 9 April 2025
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पालुवा फूल झैं राम्रा हलुका कपडाकन।
पहिरी दुनियाँ लाग्यो वसन्तैको सखा हुन।।
कसैको अब जाँदैन भद्दा कन्थाविषे मन।
कालाऽनुगारी सारज्ञ कवि झैं छन् सबै जन।।
दबाई जेबमा चम्पा लागे रसिक घूमन।
सुगन्धका कुनै साक्षात् मूर्ति जस्ता बनीकन।।
वियोगी पान्थका आगे रसिलो ऋतुनायक।
भयो भारतका लेखा कलि झैं दुःखदायक।।
कर्याङ्कुरुङको पङ्क्ति एकतामा जमीकन।
सभ्य संसार झैं थाल्यो उत्तरोत्तर लम्कन।।
त्यो मानू मधुलक्ष्मीका माथको भृङ्गगुञ्जित।
नीलपङ्कजमाला झैं देखिन्छ क्षणलम्बित।।
बेसी हिउँदमा झर्छ वर्षामा लेख पस्तछ।
पहाडिया गृहस्थी झैं क्रौञ्चको श्रेणि बस्तछ।।
गाम, बेसी गरी लम्बा बिचरा ती चरा सब।
जीवनक्रमको शिक्षा स्पष्ट दिन्छन् सगौरव।।
तडागमा खडा फेरि भयो कमलको वन।
भित्री बीज छँदासम्म मासिन्थ्यो र कुरा कुन?।।