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Revision as of 09:59, 9 April 2025
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सुतीरहन्छ दुनियाँ सूर्योदय हुँदा पनि।
अविद्याले अँठ्याएको वृद्ध भारत झैं बनी।।
लाग्छ लामू कडा तातो दिन कल्पबराबरी।
ठण्डा रात बितीदिन्छ मानू एकै पलासरी।।
के गर्छ नक्कली पङ्खा, के गर्छन् हिम, सर्बत।
चूर्ण हुन्न विना मेघ, गर्मीको पूर्ण बर्गत।।
भरसक पढि सारा ग्रीष्मको यो विचार
मनबिच लिनुहोला क्यै भयेदेखि सार।
भनि सविनय लत्री नित्य जोडेर हात
विनति सुकविलाई गर्छ यो लेखनाथ।।
इति ग्रीष्म-विचार