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Revision as of 09:44, 9 April 2025
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जडेको छ जथाभावी अवीर पुरमा सब।
लोकमा वीरकै हुन्छ प्रतिष्ठा, मान, गौरव।।
वसन्ती रङ्गका वस्त्र पहिरीकन अङ्गमा।
क्या मजाले डुबेको छ दुनियाँ रसरङ्गमा।।
यो हो श्रीकृष्णलीलाको रश्मि यौटा पुरातन।
प्रकाश जसको हामी लिंदै छौं अझ पावन।।
पूर्णिमा तिथि हो आज पूर्ण भो शिशिरस्थिति।
भोलि अवश्य देखिन्छ वसन्त मधुराऽऽकृति।।
१
सकल ऋतुविचार प्रेमका साथ हेरी
गुण जति लिनुहोला दोषलाई नटेरी।
भनि सकल गुणीका सामने भक्तिसाथ
अतिशय झुकि बिन्ती गर्छ यो लेखनाथ।।
इति शिशिर-विचार
समाप्तं शुभम्