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जडेको छ जथाभावी अवीर पुरमा सब। | जडेको छ जथाभावी अवीर पुरमा सब। | ||
लोकमा वीरकै हुन्छ प्रतिष्ठा, मान, गौरव।। | लोकमा वीरकै हुन्छ प्रतिष्ठा, मान, गौरव।। | ||
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वसन्ती रङ्गका वस्त्र पहिरीकन अङ्गमा। | वसन्ती रङ्गका वस्त्र पहिरीकन अङ्गमा। | ||
क्या मजाले डुबेको छ दुनियाँ रसरङ्गमा।। | क्या मजाले डुबेको छ दुनियाँ रसरङ्गमा।। | ||
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यो हो श्रीकृष्णलीलाको रश्मि यौटा पुरातन। | यो हो श्रीकृष्णलीलाको रश्मि यौटा पुरातन। | ||
प्रकाश जसको हामी लिंदै छौं अझ पावन।। | प्रकाश जसको हामी लिंदै छौं अझ पावन।। | ||
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पूर्णिमा तिथि हो आज पूर्ण भो शिशिरस्थिति। | पूर्णिमा तिथि हो आज पूर्ण भो शिशिरस्थिति। | ||
भोलि अवश्य देखिन्छ वसन्त मधुराऽऽकृति।। | भोलि अवश्य देखिन्छ वसन्त मधुराऽऽकृति।। | ||
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सकल ऋतुविचार प्रेमका साथ हेरी | सकल ऋतुविचार प्रेमका साथ हेरी | ||
गुण जति लिनुहोला दोषलाई नटेरी। | गुण जति लिनुहोला दोषलाई नटेरी। | ||
भनि सकल गुणीका सामने भक्तिसाथ | भनि सकल गुणीका सामने भक्तिसाथ | ||
अतिशय झुकि बिन्ती गर्छ यो लेखनाथ।। | अतिशय झुकि बिन्ती गर्छ यो लेखनाथ।। | ||
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Revision as of 09:43, 9 April 2025
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<poem> जडेको छ जथाभावी अवीर पुरमा सब। लोकमा वीरकै हुन्छ प्रतिष्ठा, मान, गौरव।।
वसन्ती रङ्गका वस्त्र पहिरीकन अङ्गमा। क्या मजाले डुबेको छ दुनियाँ रसरङ्गमा।।
यो हो श्रीकृष्णलीलाको रश्मि यौटा पुरातन। प्रकाश जसको हामी लिंदै छौं अझ पावन।।
पूर्णिमा तिथि हो आज पूर्ण भो शिशिरस्थिति। भोलि अवश्य देखिन्छ वसन्त मधुराऽऽकृति।। १ सकल ऋतुविचार प्रेमका साथ हेरी गुण जति लिनुहोला दोषलाई नटेरी। भनि सकल गुणीका सामने भक्तिसाथ अतिशय झुकि बिन्ती गर्छ यो लेखनाथ।।
इति शिशिर-विचार {{pcn|{{smallerTemplate:'''समाप्तं शुभम्'''}}