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→Not proofread: Created page with " आफना जलधाराले बढेको विश्वको खुशी। हेर्न लाग्यो कि वा मेघ खिस्स हाँसी परै बसी?।। ७ रूपरङ्गादिले शून्य सत्त्वशेष कुनै धन। जीवन्मुक्तसरी थाले हावामाफिक खेलन।। ८ सेता बादलका टुक्रा..." |
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आफना जलधाराले बढेको विश्वको खुशी। | आफना जलधाराले बढेको विश्वको खुशी। | ||
हेर्न लाग्यो कि वा मेघ खिस्स हाँसी परै बसी?।। | हेर्न लाग्यो कि वा मेघ खिस्स हाँसी परै बसी?।। | ||
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रूपरङ्गादिले शून्य सत्त्वशेष कुनै धन। | रूपरङ्गादिले शून्य सत्त्वशेष कुनै धन। | ||
जीवन्मुक्तसरी थाले हावामाफिक खेलन।। | जीवन्मुक्तसरी थाले हावामाफिक खेलन।। | ||
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सेता बादलका टुक्रा कुनाकानी अली अली। | सेता बादलका टुक्रा कुनाकानी अली अली। | ||
चल्छन् बिस्तार बिस्तारै कलिमा साधु झैं गली।। | चल्छन् बिस्तार बिस्तारै कलिमा साधु झैं गली।। | ||
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बडो उज्यालो आनन्दी भगवान् शङ्करैसरी। | बडो उज्यालो आनन्दी भगवान् शङ्करैसरी। | ||
हिमालमा पस्यो मेघ विश्वबाधा सबै हरी।। | हिमालमा पस्यो मेघ विश्वबाधा सबै हरी।। | ||
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मेघ झैं विश्वसेवामा लगाई शुद्ध जीवन। | मेघ झैं विश्वसेवामा लगाई शुद्ध जीवन। | ||
अन्त्यमा शान्ति जो लिन्छन् उनै हुन् मुक्तिभाजन।। | अन्त्यमा शान्ति जो लिन्छन् उनै हुन् मुक्तिभाजन।। | ||
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हरायी मेघका साथै उज्याली बिजुली पनि। | हरायी मेघका साथै उज्याली बिजुली पनि। | ||
भर्ता गयेपछी कान्ता रहन्थी अन्त के भनी?।। | भर्ता गयेपछी कान्ता रहन्थी अन्त के भनी?।। | ||
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जगद्व्यापी उही मेघ टुक्रा टुक्रा भईकन। | जगद्व्यापी उही मेघ टुक्रा टुक्रा भईकन। | ||
हिन्दूसाम्राज्य झैं आज गिर्यो पायिन्न देखन।। | हिन्दूसाम्राज्य झैं आज गिर्यो पायिन्न देखन।। | ||
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मेघले अघि वर्षामा गरेका पुण्यवृष्टिको। | मेघले अघि वर्षामा गरेका पुण्यवृष्टिको। | ||
फलरूप नयाँ रङ्ग निस्क्यो कि सब सृष्टिको?।। | फलरूप नयाँ रङ्ग निस्क्यो कि सब सृष्टिको?।। | ||
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दिव्य सौभाग्यधारामा नुहाई भइ निर्मल। | दिव्य सौभाग्यधारामा नुहाई भइ निर्मल। | ||
निस्केको तुल्य देखिन्छ उज्यालो विश्वमण्डल।। | निस्केको तुल्य देखिन्छ उज्यालो विश्वमण्डल।। | ||
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Revision as of 09:21, 9 April 2025
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आफना जलधाराले बढेको विश्वको खुशी।
हेर्न लाग्यो कि वा मेघ खिस्स हाँसी परै बसी?।।
रूपरङ्गादिले शून्य सत्त्वशेष कुनै धन।
जीवन्मुक्तसरी थाले हावामाफिक खेलन।।
सेता बादलका टुक्रा कुनाकानी अली अली।
चल्छन् बिस्तार बिस्तारै कलिमा साधु झैं गली।।
बडो उज्यालो आनन्दी भगवान् शङ्करैसरी।
हिमालमा पस्यो मेघ विश्वबाधा सबै हरी।।
मेघ झैं विश्वसेवामा लगाई शुद्ध जीवन।
अन्त्यमा शान्ति जो लिन्छन् उनै हुन् मुक्तिभाजन।।
हरायी मेघका साथै उज्याली बिजुली पनि।
भर्ता गयेपछी कान्ता रहन्थी अन्त के भनी?।।
जगद्व्यापी उही मेघ टुक्रा टुक्रा भईकन।
हिन्दूसाम्राज्य झैं आज गिर्यो पायिन्न देखन।।
मेघले अघि वर्षामा गरेका पुण्यवृष्टिको।
फलरूप नयाँ रङ्ग निस्क्यो कि सब सृष्टिको?।।
दिव्य सौभाग्यधारामा नुहाई भइ निर्मल।
निस्केको तुल्य देखिन्छ उज्यालो विश्वमण्डल।।