Page:Shakuntala.pdf/64: Difference between revisions
Appearance
No edit summary |
No edit summary |
||
Page body (to be transcluded): | Page body (to be transcluded): | ||
Line 1: | Line 1: | ||
{{c|{{x-larger|'''षष्ठ सर्ग'''}}<br/> | {{c|{{x-larger|'''षष्ठ सर्ग'''}}<br/> | ||
'''(खग्विणी)'''}} | '''(खग्विणी)'''}} | ||
{{center block| | {{center block| | ||
<poem> | <poem> |
Revision as of 16:07, 17 February 2025
This page has not been proofread
षष्ठ सर्ग
(खग्विणी)
(खग्विणी)
मेनका हेर्दथिन् भावले सुन्दरी ।
बालिकालाइ ती मालिनीतीरमा ॥
आउँथे प्रेरणा दिव्य आनन्दका ।
चन्द्रका रशिममा स्वर्गदेखिन् झरी ॥
(१)
घामको उष्णता चम्किँदा मुस्किने ।
फूलका मुस्मुसे शान्त जादूहरू ॥
चक्षुमा बालको पस्दथे सुस्तरी ।
(२)
रङ्गका वस्त्रमा बास मग्मग् भरी ।
रेशमी पातला पुष्पका शानले॥
दक्षिणी वायुको राहमा डाकिने ।
गुन्गुने गानका पङ्ख छन् भृङ्ग ती ॥
(३)
आउँथे झुण्ड भै वल्लरीमा सजी ।
पुष्प पीयूषको एक गोला त्यहाँ ॥
पुष्पका स्नायुका चाँदनीका सुधा ।
तप्त तप्काउँथै ओठमा बालको ॥
(४)