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जुपिटरका जटा-कटकमा जात । | |||
मातर् सरस्वति ! अमर-वर्मिणी ! | |||
यूनानी शारदै आउ ! | |||
वीरानुरागिणी द्वितीय-लोचनी ! | |||
तुहिना५चलका शीतल छायामा, | |||
महावीरको दिव्य संगीत सुनाउ । | |||
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कनकतंत्रीमा मधुरलय-मंत्री | |||
अयि । तमोहंव्री तिमी ! कर्घ्वदुशी, | |||
जाम्ब्तद-प्रपातमा अभिनव प्रभातको, | |||
पोख निहग विहाग्र सुराग यहाँ, | |||
दिव्य संगीतमा, मदिरोन्मत्त । | |||
जन-मन-खग-ढृगकी प्रत्युषासरि, | |||
ए वीणावादिनी जननी ! | |||
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तिमी, जो, | |||
सुन्दर, सित अलखामा, विधुकरले | |||
लसित तुहिन झैँ स्मितवदनी, | |||
शरदीय शान्तिमा शुभ्र, स्वच्छन्द, | |||
यूनानी शिखरमा अभ्रविमंडित | |||
बस्छघौ, एकाकिनी अदृष्ट मातमा । | |||
ग्रोल । | |||
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बोल रे भाषाअधिखात्री ! | |||
तिमीलाई छज्ञान युनानको महान् । | |||
यूनान !- ती वीर-जनयित्री सुन्दरी | |||
वरुणविश्ुंबित जयपाशवा, | |||
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Revision as of 09:30, 6 June 2025
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प्रथम सर्ग
(१)
पर्वतशिरमा सौदामिनीसरि,
जुपिटरका जटा-कटकमा जात ।
मातर् सरस्वति ! अमर-वर्मिणी !
यूनानी शारदै आउ !
वीरानुरागिणी द्वितीय-लोचनी !
तुहिना५चलका शीतल छायामा,
महावीरको दिव्य संगीत सुनाउ ।
(२)
कनकतंत्रीमा मधुरलय-मंत्री
अयि । तमोहंव्री तिमी ! कर्घ्वदुशी,
जाम्ब्तद-प्रपातमा अभिनव प्रभातको,
पोख निहग विहाग्र सुराग यहाँ,
दिव्य संगीतमा, मदिरोन्मत्त ।
जन-मन-खग-ढृगकी प्रत्युषासरि,
ए वीणावादिनी जननी !
(३)
तिमी, जो,
सुन्दर, सित अलखामा, विधुकरले
लसित तुहिन झैँ स्मितवदनी,
शरदीय शान्तिमा शुभ्र, स्वच्छन्द,
यूनानी शिखरमा अभ्रविमंडित
बस्छघौ, एकाकिनी अदृष्ट मातमा ।
ग्रोल ।
(४)
बोल रे भाषाअधिखात्री !
तिमीलाई छज्ञान युनानको महान् ।
यूनान !- ती वीर-जनयित्री सुन्दरी
वरुणविश्ुंबित जयपाशवा,