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प्रारब्धमय-निस्पन्द निस्क्यो मानस-सरोवरमा खस्यो | |||
::भुमरी परी त्यो फिर फन्फनायो समभावना दृढ रङ् बस्यो | |||
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सारा सरोवर समतुल्य भैगो, थाल्यो छचल्किन बेसरी | |||
::चौतर्फी खलबल बग्दै त्यो लाखौँ हजारौँ मुख गरी | |||
जम्बा हुँदै सब कलनाऽऽनुसारी अवितर्क्य एकै धारमा | |||
::पत्तै नपाई घुस्तै गयो त्यो विकराल मोह-द्वारमा | |||
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कालो भयङ्कर गर्भे गुफामा धसियो, घुस्यो अलमल्ल भो | |||
::अलिबेर तेही अलमल्लमा नै अर्कै प्रभा झलमल्ल भो | |||
आफू खसेको डण्डुर कालो ठाडो भयानक देखियो | |||
::लाग्यो कहाली त्यो देखदामा सोला अत्याहटले दियो | |||
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Revision as of 12:00, 18 May 2025
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जीवन-नदी
(१)
आज्ञानका दुर्गम शिखरमा बेहद जमेको सर्वदा
हिमराशि सञ्चित कर्मको भवितव्यता-वश पग्लँदा
प्रारब्धमय-निस्पन्द निस्क्यो मानस-सरोवरमा खस्यो
भुमरी परी त्यो फिर फन्फनायो समभावना दृढ रङ् बस्यो
(२)
सारा सरोवर समतुल्य भैगो, थाल्यो छचल्किन बेसरी
चौतर्फी खलबल बग्दै त्यो लाखौँ हजारौँ मुख गरी
जम्बा हुँदै सब कलनाऽऽनुसारी अवितर्क्य एकै धारमा
पत्तै नपाई घुस्तै गयो त्यो विकराल मोह-द्वारमा
(३)
कालो भयङ्कर गर्भे गुफामा धसियो, घुस्यो अलमल्ल भो
अलिबेर तेही अलमल्लमा नै अर्कै प्रभा झलमल्ल भो
आफू खसेको डण्डुर कालो ठाडो भयानक देखियो
लाग्यो कहाली त्यो देखदामा सोला अत्याहटले दियो